सांसों की गहराई में छुपा,
शांति का प्यारा साज है योग।
तन-मन को जो साध ले,
वो अनुपम इलाज है योग।।
भीतर के तूफ़ानों से लड़ना,
बाहर की दौड़ से हटना,
स्वयं से मिलकर मुस्कुराना,
यही तो है असली तपना।
हर पीड़ा का सहज प्रतिकार,
सत्य, सयंम, संवाद है योग।।
न कोई भाषा, न कोई धर्म,
न सीमाएं इसकी रेखा हैं,
हर देश, हर मानव के लिए,
योग तो जीवन की रेखा है।
शांति, प्रेम और आत्म-विकास,
हर पथ का आग़ाज़ है योग।।
सूरज की पहली किरणों में,
जब प्रकृति मुस्कुराती है,
उस मौन सुबह की वाणी में,
योग हमें अपनाता है।
हर दिन को पावन कर दे,
ऐसा दिव्य प्रकाश है योग।।
चलो जोड़ें मन को फिर से,
हर सांस बने अभिमंत्रित,
तन स्वस्थ, मन शांत रहे,
जीवन बने पुनः पवित्र।
इस व्यस्त भरी दुनिया में,
सच्चा विराम-व्यास है योग।।
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