—मंदिर में जलाभिषेक से तीर्थ स्नान, दान जप तप का फल मिलता हैं
वाराणसी,18 जुलाई (Udaipur Kiran) । गंगा और असि (अस्सी) नदी के संगम स्थल पर स्थित भगवान संगमेश्वर महादेव का मंदिर अपने धार्मिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत प्रसिद्ध है। विशेष रूप से सावन माह में यहाँ जलाभिषेक का विशेष महात्म्य है। इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख काशी और मत्स्य पुराण में भी किया गया है, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता को दर्शाता है।
क्षेत्रीय समाजसेवी रामयश मिश्र बताते हैं कि काशी के केदार खंड में स्थित संगमेश्वर महादेव मंदिर को मयूरेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर बलुए पत्थरों से निर्मित है और यहाँ शिखर के साथ बाणेश्वर एवं अमरेश्वर शिवलिंग भी स्थापित हैं। शिव पुराण और मत्स्य पुराण में वर्णित है कि गंगा और असि नदी के संगम स्थल पर स्वयंभू रूप में संगमेश्वर महादेव विराजमान हैं। प्राचीन समय से ही श्रद्धालु यहाँ गंगा स्नान के बाद जलाभिषेक के लिए आते हैं। गंगा और असि की पवित्र धाराओं के बीच स्थित यह मंदिर न केवल बाहरी श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि स्थानीय निवासियों के लिए भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।
यहाँ आने वाले भक्तों का विश्वास है कि यहां जल चढ़ाने से समस्त भूमंडल के सभी तीर्थों के स्नान, दान, जप, तप, यज्ञ और तर्पण आदि के समस्त पुण्य का फल प्राप्त होता है।
समाजसेवी बताते है कि काशी में जहाँ बाबा विश्वेश्वर विराजमान हैं, वहीं यहाँ के कण-कण में शंकर का वास है। सावन माह महादेव को अत्यंत प्रिय है, और इस दौरान जलाभिषेक करने से भक्तों की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस समय, शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु अत्यंत उत्साहित रहते हैं, क्योंकि यह माह महादेव के प्रति आस्था और भक्ति को प्रगाढ़ करने का विशेष अवसर होता है।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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