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सदानीरा समागमः नदी व जल संरचनाओं का संरक्षण जनजागरण और सहयोग से ही संभव

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भारत भवन के अंतरंग सभागार में अथ: नदी कथा वैचारिक समागम सम्‍पन्‍न

भोपाल, 24 जून (Udaipur Kiran) । जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत सदानीरा समागम के पाँचवें दिन मंगलवार को भारत भवन के अंतरंग सभागार में जलीय जीव एवं जल संरचनाओं पर एकाग्र वैचारिक समागम का आयोजन हुआ। इस मौके पर सभी विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि नदी तालाबों और जल संरचनाओं को संबोधित संरक्षित करने के लिए सरकार के साथ-साथ लोक समाज को भी आगे आना होगा। यह जनजागरण और सहयोग से ही संभव है। तभी हम अपना भविष्य सुरक्षित कर पाएंगे।

वरिष्ठ लेखक व पत्रकार अजय बोकिल ने कहा कि पानी को बचाने, साफ रखने और उसके महत्व को कायम रखने के लिए भोपाल सबसे बड़ा उदाहरण है। एक समय ऐसा भी आया जब बड़े तालाब का पानी मूर्ति और ताजिया विसर्जन के चलते दूषित होता चला गया था। मतलब पीने योग्य नहीं था तब भोपालवासियों ने यह तय किया कि तालाब में मूर्ति विसर्जन नहीं किया जाएगा इसके लिए अलग से कुंड बनाए जाएंगे ऐसा करने पर पहले की तुलना में तालाब का पानी साफ भी हुआ और शुद्ध भी। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे अन्य स्थानों पर भी लागू किया जाना चाहिए।

वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे ने कहा कि जल संरचनाओं और नदियों को संरक्षित करने के लिए पानी के पक्ष में जन अभियन चलाया जाना चाहिए। आज इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और जल संरचनाओं को बचाने के लिए प्रदेश और देश के दुनिया के मॉडलों को अपनाना चाहिये।

इस मौके पर वरिष्ठ पुरातत्वविद शिवाकांत वाजपेई ने कहा कि जल जीवन और जन्म त्रिवेणी हैं। इसे हमें समझना होगा। विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के अन्वेषणकर्ता आरोह श्रीवास्तव ने जल और समय पर चर्चा की। उन्होंने फ्रेश वाटर को लेकर सुझाव दिया कि हमारे जीवन में फ्रेश वाटर का इस्तेमाल बहुत कम होता है, लेकिन दैनिक दिनचर्या में इस फ्रेशवाटर को हम वेस्टेज के रूप में इस्तेमाल कर देते हैं यह चिंता का विषय है।

मथुरा के युवा शोधकर्ता योगी अनुराग ने नदियों के महत्व को बताते हुए उन्हें संरक्षित करने की बात कही। संजय सिंह ने जल संरचनाओं को संरक्षित करने के लिए विज्ञान का विषय न मानते हुए हमें आस्था का विषय बनाना होगा तभी जल स्रोतों नदियों और पानी को बचाया जा सकता है।

वरिष्ठ चिकित्सक राजेश शर्मा ने नदियों को आरोग्य कैसे रखें इस पर बात करते हुए कहा कि सबसे पहले हमें नदियों के रोग को, उसमें पनप रहे कीटाणुओं को समझना होगा। यह कीटाणु, यह रोग, हम खुद हैं, उद्योग हैं, जो नदियों को पवित्र बनाने से रोक रहे हैं। हमें याद है कोविड का समय जब नदी की पवित्रता और उसमें जल जीव स्वतंत्र रूप से रह रहे थे। हम खुद ये कहने लगे थे कि प्रत्येक साल लॉकडाउन जैसी स्थिति बन जानी चाहिए ताकि हमारी नदी, जल संरचनाएं पवित्र हो सके।

युवा पत्रकार मीणा जांगिड़ ने कहा कि जल का विषय सरकार का नहीं समाज का विषय होना चाहिए। हमारी प्राचीन परंपराएं पानी के महत्व को बताती आई हैं इसे भविष्य में भी कायम रखने की जरूरत है।

डॉ. रमेश यादव ने भोपाल के बड़े तालाब का जिक्र करते हुए कहा कि राजा भोज ने जिस झील को बनाया आज उसे बचाने की बात आ रही है। प्राचीन काल में लोग नदियों की पवित्रता को ध्यान में रखते थे नदियों में कभी भी दूषित पानी नहीं जाने देते थे। आज जल स्रोतों को संरक्षित करने की जरूरत है तभी भविष्य सुरक्षित हो सकता है।

डॉ. इंदिरा खुराना ने कहा कि आज जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो सबसे पहले कार्बन उत्सर्जन की बात की जाती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रभाव यदि किसी पर पड़ता है तो वह पानी पर पड़ता है। जैसे बाढ़ का आना, ग्लेशियर का पिघलना, समुद्र में तूफान, अकाल पड़ना आदि यह वैश्विक चुनौतियां भी बनाकर हमारे सामने हैं। पारंपरिक ज्ञान से ही है इन आपदाओं से बचा जा सकता है। आज विकेंद्रित जल प्रबंधन की दिशा में कार्य करने की जरूरत है।

वरिष्ठ अधिकारी नागार्जुन गौड़ा ने कहा जल संचय-जल भागीदारी अभियान ने देश भर में एक नई पहचान बनाई है। जिसके चलते खंडवा देश का नंबर वन शहर बनकर सामने आया है। हमने 1 लाख 30 हजार से अधिक स्ट्रक्चर्स तैयार किये जिसमें वाटर रिचार्ज का काम हुआ। इस अभियान का मुख्य बिंदु रूफ़ वाटर हार्वेस्टिंग था जिसके चलते लाखों लीटर पानी को संचित किया गया।

समागम का समन्वय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी और वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने किया। इसके पहले भूमिका वीर भारत न्यास के न्यासी सचिव श्रीराम तिवारी ने रखी और जल गंगा संवर्धन अभियान की जानकारी दी और समागम की आवश्यकता को बताया।

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(Udaipur Kiran) तोमर

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