अजमेर, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . दीपावली पर Monday को अजमेर में गुर्जर समाज ने अपने पितरों का श्राद्ध बड़ी श्रद्धा और परंपरा के साथ किया. समाज के लोग सुबह आनासागर झील के किनारे एकत्र हुए, जहां उन्होंने अपने पितरों और पूर्वजों को श्रद्धा अर्पित करते हुए तर्पण किया. इस अवसर पर परिवारों में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की गई.
श्राद्ध से पूर्व प्रत्येक परिवार ने घरों में प्रसाद अलग निकालकर घर की छतों या ऊंचे स्थान पर रखा. समाज में यह मान्यता है कि प्रसाद को कौआ द्वारा ग्रहण किया जाना आवश्यक होता है, क्योंकि इसे पितरों की स्वीकृति का प्रतीक माना जाता है. रोचक बात यह रही कि जहां सामान्य दिनों में कौए बहुत कम दिखाई देते हैं, वहीं इस दिन गुर्जर समाज के घरों और तालाबों के किनारों पर वे बड़ी संख्या में आकर प्रसाद ग्रहण करते नजर आए. कौओं द्वारा प्रसाद ग्रहण करने के बाद समाज के लोग झील के किनारे पानी में खड़े हुए. सभी ने हरी घास और फूस से एक बेल बनाकर उसे पकड़ा. इसके बाद एक व्यक्ति ने सभी के हाथों में प्रसाद रखा और सभी ने एक साथ उस बेल को जल में प्रवाहित किया. परंपरा के अनुसार ध्यान रखा गया कि बेल पूरी बनी रहे और कहीं से टूटे नहीं, क्योंकि इसे शुभता और एकता का प्रतीक माना जाता है. तर्पण के पश्चात सभी ने सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण किया. भोजन के बाद बर्तनों को धोकर उनमें झील का जल भरा गया और उसे घर लाकर छिड़काव किया गया. इसके बाद ही घरों की सफाई, झाड़ू-पोंछा और अन्य कार्य प्रारंभ किए गए.
उल्लेखनीय है कि गुर्जर समाज पारंपरिक रूप से पशुपालक समुदाय रहा है. यह गाय, भैंस और भेड़ों का पालन करता आया है. पहले के समय में समाज के लोग अपने पशुधन को चराने के लिए गांवों और जिलों से बाहर भी जाते थे और दीपावली के समय ही घर लौटते थे. इसी कारण समाज के पंच पटेलों ने उस समय निर्णय लिया था कि दीपावली के दिन पितरों का श्राद्ध एवं तर्पण किया जाएगा. तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है.
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(Udaipur Kiran)
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