वॉशिंगटन/मॉस्को: डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। यही ये कंपनियां हैं जो यूक्रेन में फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से भारत को लगातार कच्चे तेल की सप्लाई कर रही थीं। जिसके बाद अब आशंका है कि रूस से डिस्काउंट पर कच्चे तेल आयात करने का दौरा अब खत्म हो सकता है। भारत के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता रूस से तेल आयात में भारी गिरावट आ सकती है।
हालांकि अमेरिका की तरफ से लगाए गये प्रतिबंधों का कितना वास्तविक असर होने वाला है, इसका अनुमान लगाया जाना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने इंडस्ट्री के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी रिफाइनरियां पहले से ही संभावित जोखिमों का मूल्यांकन कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अब से वे जो भी रूसी तेल खरीदें, वह सीधे रोसनेफ्ट, लुकोइल और उनकी कई शाखाओं से न लिया जाए। इसके अलावा भारतीय बैंक भी अमेरिका के सेकेंडरी सेंक्सन से बचने के लिए कुछ कदम उठा सकती हैं।
रूसी तेल खरीदना कम करने पर मजबूर होगा भारत?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, निजी क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल), जो अकेले भारत के रूसी तेल आयात का लगभग आधा हिस्सा खरीदती है और टर्म डील के तहत रोसनेफ्ट से अपनी रूसी तेल खरीद का बड़ा हिस्सा प्राप्त करती है, वो मास्को से अपने तेल आयात में भारी कटौती कर सकती है। जिसका सीधा असर रूस के राजस्व पर पड़ने की संभावना है। रूस, तेल बेचकर ही सबसे ज्यादा फंड हासिल करता है और ट्रंप प्रशासन ने पुतिन के सबसे कमजोर नस पर वार किया है। भारत के अलावा चीन दूसरा देश है जो सबसे ज्यादा रूसी तेल खरीदता है।
भारत ने अभी तक इस मुद्दे पर अमेरिका के प्रेशर आगे झुकने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। हालांकि भारत रूसी तेल खरीदना कम कर सकता था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से किए जाने वाले दावों की वजह से सरकार के लिए चाहकर भी रूसी तेल में कटौती करना संभव नहीं था। लेकिन अब जब नये प्रतिबंध लगाए गये हैं, तब क्या भारत रूसी तेल का आयात जारी रखेगा या उन प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए क्या नये रास्ते निकाले जाते हैं, उसपर नजर रहेगी। इन प्रतिबंधों से अब भारत को रूसी कच्चे तेल के आयात को तेजी से कम करने के लिए ज्यादा गुंजाइश मिल गई है। क्यों घरेलू राजनीति की वजह से भारत जरा भी संकेत नहीं दे सकता था कि वो अमेरिका के प्रेशर के आगे कमजोर है, लेकिन नये अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के लिए रूसी तेल आयात कम करने का रास्ता खोल दिया है।
भारत को बचकर निकलने का रास्ता मिल गया?
भारत इस वक्त अपनी जरूरत का करीब 35-40 प्रतिशत रूस से कच्चे तेल का आयात करता है। इस वजह से ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगा रखा है, जिसका असर भारतीय इकोनॉमी पर पड़ा है। लेकिन अब नये प्रतिबंधों ने भारत के लिए रूसी तेल आयात कम करने का बढ़िया रास्ता खोल दिया है। हालांकि रोसनेफ्ट और लुकोइल पर अमेरिकी प्रतिबंध, रूसी तेल पर प्रतिबंध नहीं हैं, फिर भी ये भारत को होने वाली आपूर्ति को वास्तव में कम कर सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इंडस्ट्री के अनुमानों के अनुसार, भारत के रूसी तेल आयात का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा, इन्हीं रूसी ऊर्जा कंपनियों से आता है। रोसनेफ्ट और लुकोइल मिलकर रूस के तेल उत्पादन और समुद्री निर्यात के आधे से ज्यादा का योगदान करते हैं।
लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे भारत और रूस के संबंध पर असर होगा? भारत अभी तक अमेरिकी प्रेशर के आगे अडिग था और रूसी तेल खरीद रहा था। लेकिन नये हालात में अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद करता है तो रूस की क्या प्रतिक्रिया होगी, ये देखना होगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगले महीने भारत आ रहे हैं। इस दौरान भारत के साथ डिफेंस, द्विपक्षीय व्यापार पर कुछ नई बातचीत होने की उम्मीद है। फिलहाल अब पुतिन के दौरे पर नजरें टिकी हुई हैं, लेकिन दूसरी तरफ अच्छी बात ये है कि अमेरिका से ट्रेड डील भी करीब करीब फाइनल होने के करीब है, इसलिए भारत पर अमेरिकी टैरिफ 50 प्रतिशत से कम होकर 15-16 प्रतिशत तक आ सकता है, जो देश की इकोनॉमी के लिए लाभदायक होगी।
हालांकि अमेरिका की तरफ से लगाए गये प्रतिबंधों का कितना वास्तविक असर होने वाला है, इसका अनुमान लगाया जाना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने इंडस्ट्री के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी रिफाइनरियां पहले से ही संभावित जोखिमों का मूल्यांकन कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अब से वे जो भी रूसी तेल खरीदें, वह सीधे रोसनेफ्ट, लुकोइल और उनकी कई शाखाओं से न लिया जाए। इसके अलावा भारतीय बैंक भी अमेरिका के सेकेंडरी सेंक्सन से बचने के लिए कुछ कदम उठा सकती हैं।
रूसी तेल खरीदना कम करने पर मजबूर होगा भारत?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, निजी क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल), जो अकेले भारत के रूसी तेल आयात का लगभग आधा हिस्सा खरीदती है और टर्म डील के तहत रोसनेफ्ट से अपनी रूसी तेल खरीद का बड़ा हिस्सा प्राप्त करती है, वो मास्को से अपने तेल आयात में भारी कटौती कर सकती है। जिसका सीधा असर रूस के राजस्व पर पड़ने की संभावना है। रूस, तेल बेचकर ही सबसे ज्यादा फंड हासिल करता है और ट्रंप प्रशासन ने पुतिन के सबसे कमजोर नस पर वार किया है। भारत के अलावा चीन दूसरा देश है जो सबसे ज्यादा रूसी तेल खरीदता है।
भारत ने अभी तक इस मुद्दे पर अमेरिका के प्रेशर आगे झुकने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। हालांकि भारत रूसी तेल खरीदना कम कर सकता था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से किए जाने वाले दावों की वजह से सरकार के लिए चाहकर भी रूसी तेल में कटौती करना संभव नहीं था। लेकिन अब जब नये प्रतिबंध लगाए गये हैं, तब क्या भारत रूसी तेल का आयात जारी रखेगा या उन प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए क्या नये रास्ते निकाले जाते हैं, उसपर नजर रहेगी। इन प्रतिबंधों से अब भारत को रूसी कच्चे तेल के आयात को तेजी से कम करने के लिए ज्यादा गुंजाइश मिल गई है। क्यों घरेलू राजनीति की वजह से भारत जरा भी संकेत नहीं दे सकता था कि वो अमेरिका के प्रेशर के आगे कमजोर है, लेकिन नये अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के लिए रूसी तेल आयात कम करने का रास्ता खोल दिया है।
भारत को बचकर निकलने का रास्ता मिल गया?
भारत इस वक्त अपनी जरूरत का करीब 35-40 प्रतिशत रूस से कच्चे तेल का आयात करता है। इस वजह से ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगा रखा है, जिसका असर भारतीय इकोनॉमी पर पड़ा है। लेकिन अब नये प्रतिबंधों ने भारत के लिए रूसी तेल आयात कम करने का बढ़िया रास्ता खोल दिया है। हालांकि रोसनेफ्ट और लुकोइल पर अमेरिकी प्रतिबंध, रूसी तेल पर प्रतिबंध नहीं हैं, फिर भी ये भारत को होने वाली आपूर्ति को वास्तव में कम कर सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इंडस्ट्री के अनुमानों के अनुसार, भारत के रूसी तेल आयात का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा, इन्हीं रूसी ऊर्जा कंपनियों से आता है। रोसनेफ्ट और लुकोइल मिलकर रूस के तेल उत्पादन और समुद्री निर्यात के आधे से ज्यादा का योगदान करते हैं।
लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे भारत और रूस के संबंध पर असर होगा? भारत अभी तक अमेरिकी प्रेशर के आगे अडिग था और रूसी तेल खरीद रहा था। लेकिन नये हालात में अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद करता है तो रूस की क्या प्रतिक्रिया होगी, ये देखना होगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगले महीने भारत आ रहे हैं। इस दौरान भारत के साथ डिफेंस, द्विपक्षीय व्यापार पर कुछ नई बातचीत होने की उम्मीद है। फिलहाल अब पुतिन के दौरे पर नजरें टिकी हुई हैं, लेकिन दूसरी तरफ अच्छी बात ये है कि अमेरिका से ट्रेड डील भी करीब करीब फाइनल होने के करीब है, इसलिए भारत पर अमेरिकी टैरिफ 50 प्रतिशत से कम होकर 15-16 प्रतिशत तक आ सकता है, जो देश की इकोनॉमी के लिए लाभदायक होगी।
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