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छांगुर बाबा की काली कमाई किनमें बंटी, कौन अधिकारी बने हिस्सेदार... बलरामपुर अवैध धर्मांतरण केस में जांच तेज

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बलरामपुर: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में अवैध धर्मांतरण और विदेशी फंडिंग से जुड़े मामले में लगातार नए खुलासे हो रहे हैं। इस प्रकरण का मुख्य आरोपी जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा अब जांच एजेंसियों के रडार पर है। छांगुर बाबा की जांच के क्रम में सनसनीखेज खुलासे सामने आए हैं। उसने अपनी काली कमाई का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों, कोर्ट स्टाफ, जनप्रतिनिधियों और बिचौलियों के बीच बांट दिया था। अब जांच एजेंसियां इन लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। दरअसल, जलालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा मामले की जांच अभी यूपी एटीएस और ईडी के स्तर पर चल रही है।



एसटीएफ और अन्य केंद्रीय एजेंसियों ने बुधवार को उतरौला क्षेत्र में गुप्त निरीक्षण किया। जांच में यह सामने आया है कि छांगुर बाबा की सांठगांठ 50 से अधिक लोगों से थी। इनमें कम से कम 23 लोग स्थानीय हैं। इन लोगों में कई ग्राम प्रधान, पूर्व प्रधान, न्यायालय के कर्मचारी और उनके परिजन तक शामिल हैं। राजेश उपाध्याय नामक कोर्ट बाबू की पत्नी को भी संदिग्ध फंडिंग में हिस्सेदार बनाया गया था।



चौंकाने वाली स्कीम आई सामनेसूत्रों के मुताबिक, छांगुर बाबा की खाड़ी देशों में गहरी पैठ है। वहीं से आने वाली विदेशी फंडिंग का वह इस्तेमाल स्थानीय प्रभाव बढ़ाने और अवैध धर्मांतरण नेटवर्क फैलाने में करता रहा। उसने नवीन और महबूब नाम के दो करीबियों को 50 करोड़ रुपये तक की जमीन खरीद-फरोख्त की छूट दी थी। छांगुर ने अलग-अलग जिलों में बिचौलियों को अग्रिम भुगतान दिया, जिनमें से कुछ सौदे सिर्फ जुबानी तौर पर तय किए गए।



प्रशासनिक-न्यायिक तंत्र की संलिप्तताजांच में यह भी सामने आया है कि छांगुर ने अपराधियों के जमानत खर्च तक उठाए, खासकर उन अपराधियों के जो एक खास समुदाय से जुड़े थे। एटीएस के एक गवाह को धमकाने के मामले में पहले ही तीन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। आयकर विभाग ने भी इस साल फरवरी में एक संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट जारी की थी। इसमें छांगुर की काली कमाई को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए गए थे। अब इस रिपोर्ट के आधार पर दोबारा विस्तृत जांच शुरू कर दी गई है।



राज्य और केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ-साथ एसटीएफ और एटीएस भी मामले की पड़ताल में जुटी हैं। प्रशासन का कहना है कि यह सिर्फ धर्मांतरण का मामला नहीं, बल्कि एक संगठित आपराधिक फंडिंग नेटवर्क का हिस्सा है, जो सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है। जांच एजेंसियों का फोकस अब उन लोकल नेताओं, अफसरों और बिचौलियों की पहचान पर है, जिन्हें छांगुर बाबा ने अपने मिशन में साधनों और पैसे के दम पर शामिल किया।

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