लेखक: रहीस सिंह   
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की बेसब्री आखिरकार बुसान (दक्षिण कोरिया) में 29-30 अक्टूबर 2025 को खत्म हुई, जब उन्हें जिनपिंग से हाथ मिलाने और बात करने का अवसर मिला। मुलाकात करीब पौने दो घंटे चली। इसके बाद पत्रकारों से कहा गया कि अमेरिका उन सभी चीजों पर लगाए गए टैरिफ घटा देगा, जिन्हें पहले फेंटानिल (fentanyl) बनाने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल की सप्लाई के कारण लागू किया गया था।
   
MAGA की आड़वैसे तो जब दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ती हैं तो स्वाभाविक रूप से प्रतियोगिताएं करती हैं। लेकिन जिस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में शुरू हुई, उनमें प्रतियोगिता थी ही नहीं, प्रोटेक्शनिज्म था जो MAGA (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) की आड़ में लागू किया गया। इसकी चपेट में भारत सहित कई देश आए, लेकिन चीन ने अमेरिका को उसी की शैली में जवाब दे दिया।
   
लंबा खेलपरिणाम यह हुआ कि ट्रंप को कदम पीछे खींचने पड़े। ट्रंप फेल हुए चीन की रेयर अर्थ और चिप्स डिप्लोमैसी के आगे, जिसे चीन की आर्थिक योजना का ही नहीं जियो-इकॉनमिक्स का हिस्सा मानना चाहिए। तो क्या यह मान लिया जाए कि चीन इसके जरिए 'लंबा खेल' खेलना चाहता है? लगता तो ऐसा ही है।
   
समझौते की उम्रहालांकि अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और जापान के साथ कई नए समझौते कर चीन से बाहर के स्रोतों से रेयर अर्थ पाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सच यही है कि इन सारी कवायदों के बाद भी उसे वैसी सफलता नहीं मिल पा रही, जैसी वह चाहता है। न जाने क्यों अभी भी ऐसा लगता है कि बुसान वार्ता के बाद भी भले ही कुछ दिन के लिए शांति नजर आए, लेकिन अमेरिका और चीन के बीच किसी समझौते के ज्यादा समय तक टिकने के आसार नहीं दिखते।
   
क्षेत्रीय संतुलनइसका अर्थ यह हुआ कि ट्रंप भले ही यह मानकर चल रहे हों कि 'रेयर अर्थ' का मसला हल हो चुका है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है । अभी यह कहना भी मुश्किल है इस समझौते के नियम-कायदे कौन तय करेगा। अभी तो दक्षिण कोरिया और जापान को भी देखना है। ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के साथ परमाणु शक्ति पनडुब्बी प्रौद्योगिकी साझेदारी जैसे सामारिक विषय भी उठाए हैं। भले ही अभी तक चीन ने उस पर अपने स्वभाव के मुताबिक प्रतिक्रिया न दी हो, यह क्षेत्रीय संतुलन पर तो असर डालेगा ही। ये न तो चीन को स्वीकार्य होगा और न ही उसके मित्र उत्तर कोरिया को।
   
जापान फर्स्ट की मुश्किलबीते सोमवार को ट्रंप ने जापान की प्रधानमंत्री साना तकाइची से भी मुलाकात की। ध्यान रहे कि तकाइची भी 'जापान फर्स्ट' के साथ रूढ़िवादी राष्ट्रवाद को लेकर चल रही हैं। अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या 'जापान फर्स्ट' और 'अमेरिका फर्स्ट' के बीच सब कुछ ठीक रहेगा? क्या 'जापान फर्स्ट' के साथ चीन खुद को सहज पाएगा?
   
ताइवान का एंगलजिस तरह से तकाइची ताइवान के साथ खड़ी नजर आ रही हैं, उससे यह बिल्कुल नहीं लगता कि चीन जापान के साथ खड़ा होने का मन बना पाएगा। यही नहीं जापान अपनी नई रक्षा नीति के अनुसार चीन को एशिया प्रशांत क्षेत्र की अस्थिरता का सबसे बड़ा स्रोत मानता है। जापान से महज 70 मील दूर ताइवान पर यदि चीन नियंत्रण कर लेता है तो इसका अर्थ होगा जापान के व्यापारिक मार्गो पर उसका सीधा नियंत्रण।
   
शीतयुद्ध दरवाजे तकसबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके बाद शीतयुद्ध प्रशांत सागर में जापान के दरवाजे तक पहुंच जाएगा। ट्रंप भले इसे नहीं देख पा रहे हों लेकिन तोक्यो स्पष्ट रूप से देख रहा है। यही कारण है कि जापान दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और फिलिपींस जैसे लोकतांत्रिक देश के बीच एक अर्ध सुरक्षा गठबंधन (क्वासी सिक्यॉरिटी अलायंस) बनाने का सुझाव दे रहा है।
   
खिताबों की ख्वाहिशफिलहाल डॉनल्ड ट्रंप जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, मलयेशिया और ताइवान की मूल चिंताओं से दूर अपने लिए 'डील मेकर' और 'पीस मेकर' जैसे खिताब सुनिश्चित करने की ख्वाहिश पूरा करने में अधिक लगते हैं । शायद यही उनके MAGA की चमक बढ़ाने वाले मौलिक उपकरण हैं।
   
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)
  
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की बेसब्री आखिरकार बुसान (दक्षिण कोरिया) में 29-30 अक्टूबर 2025 को खत्म हुई, जब उन्हें जिनपिंग से हाथ मिलाने और बात करने का अवसर मिला। मुलाकात करीब पौने दो घंटे चली। इसके बाद पत्रकारों से कहा गया कि अमेरिका उन सभी चीजों पर लगाए गए टैरिफ घटा देगा, जिन्हें पहले फेंटानिल (fentanyl) बनाने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल की सप्लाई के कारण लागू किया गया था।
MAGA की आड़वैसे तो जब दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ती हैं तो स्वाभाविक रूप से प्रतियोगिताएं करती हैं। लेकिन जिस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में शुरू हुई, उनमें प्रतियोगिता थी ही नहीं, प्रोटेक्शनिज्म था जो MAGA (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) की आड़ में लागू किया गया। इसकी चपेट में भारत सहित कई देश आए, लेकिन चीन ने अमेरिका को उसी की शैली में जवाब दे दिया।
लंबा खेलपरिणाम यह हुआ कि ट्रंप को कदम पीछे खींचने पड़े। ट्रंप फेल हुए चीन की रेयर अर्थ और चिप्स डिप्लोमैसी के आगे, जिसे चीन की आर्थिक योजना का ही नहीं जियो-इकॉनमिक्स का हिस्सा मानना चाहिए। तो क्या यह मान लिया जाए कि चीन इसके जरिए 'लंबा खेल' खेलना चाहता है? लगता तो ऐसा ही है।
समझौते की उम्रहालांकि अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और जापान के साथ कई नए समझौते कर चीन से बाहर के स्रोतों से रेयर अर्थ पाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सच यही है कि इन सारी कवायदों के बाद भी उसे वैसी सफलता नहीं मिल पा रही, जैसी वह चाहता है। न जाने क्यों अभी भी ऐसा लगता है कि बुसान वार्ता के बाद भी भले ही कुछ दिन के लिए शांति नजर आए, लेकिन अमेरिका और चीन के बीच किसी समझौते के ज्यादा समय तक टिकने के आसार नहीं दिखते।
क्षेत्रीय संतुलनइसका अर्थ यह हुआ कि ट्रंप भले ही यह मानकर चल रहे हों कि 'रेयर अर्थ' का मसला हल हो चुका है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है । अभी यह कहना भी मुश्किल है इस समझौते के नियम-कायदे कौन तय करेगा। अभी तो दक्षिण कोरिया और जापान को भी देखना है। ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के साथ परमाणु शक्ति पनडुब्बी प्रौद्योगिकी साझेदारी जैसे सामारिक विषय भी उठाए हैं। भले ही अभी तक चीन ने उस पर अपने स्वभाव के मुताबिक प्रतिक्रिया न दी हो, यह क्षेत्रीय संतुलन पर तो असर डालेगा ही। ये न तो चीन को स्वीकार्य होगा और न ही उसके मित्र उत्तर कोरिया को।
जापान फर्स्ट की मुश्किलबीते सोमवार को ट्रंप ने जापान की प्रधानमंत्री साना तकाइची से भी मुलाकात की। ध्यान रहे कि तकाइची भी 'जापान फर्स्ट' के साथ रूढ़िवादी राष्ट्रवाद को लेकर चल रही हैं। अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या 'जापान फर्स्ट' और 'अमेरिका फर्स्ट' के बीच सब कुछ ठीक रहेगा? क्या 'जापान फर्स्ट' के साथ चीन खुद को सहज पाएगा?
ताइवान का एंगलजिस तरह से तकाइची ताइवान के साथ खड़ी नजर आ रही हैं, उससे यह बिल्कुल नहीं लगता कि चीन जापान के साथ खड़ा होने का मन बना पाएगा। यही नहीं जापान अपनी नई रक्षा नीति के अनुसार चीन को एशिया प्रशांत क्षेत्र की अस्थिरता का सबसे बड़ा स्रोत मानता है। जापान से महज 70 मील दूर ताइवान पर यदि चीन नियंत्रण कर लेता है तो इसका अर्थ होगा जापान के व्यापारिक मार्गो पर उसका सीधा नियंत्रण।
शीतयुद्ध दरवाजे तकसबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके बाद शीतयुद्ध प्रशांत सागर में जापान के दरवाजे तक पहुंच जाएगा। ट्रंप भले इसे नहीं देख पा रहे हों लेकिन तोक्यो स्पष्ट रूप से देख रहा है। यही कारण है कि जापान दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और फिलिपींस जैसे लोकतांत्रिक देश के बीच एक अर्ध सुरक्षा गठबंधन (क्वासी सिक्यॉरिटी अलायंस) बनाने का सुझाव दे रहा है।
खिताबों की ख्वाहिशफिलहाल डॉनल्ड ट्रंप जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, मलयेशिया और ताइवान की मूल चिंताओं से दूर अपने लिए 'डील मेकर' और 'पीस मेकर' जैसे खिताब सुनिश्चित करने की ख्वाहिश पूरा करने में अधिक लगते हैं । शायद यही उनके MAGA की चमक बढ़ाने वाले मौलिक उपकरण हैं।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं)
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