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हम युद्ध को तैयार, पर जंग किसी के हित में नहीं होती... मिलिट्री एक्सपर्ट बोले

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नई दिल्ली: पहलगाम में आतंकवादियों ने पर्यटकों पर कायराना हमला किया तो भारत ने भी करार जवाब दिया। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए सिर्फ पीओजेके में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के अंदर बने आतंक के हेडक्वॉर्ट्स को तबाह किया। इंडियन आर्म्ड फोर्सेस की तरफ से भी साफ किया गया कि हमारी लड़ाई आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ थी इसलिए 7 मई को हमने सिर्फ आतंकी ठिकानों पर ही हमला किया था। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादियों का साथ देना उचित समझा और इस लड़ाई को अपनी लड़ाई बना दिया। तब हमारी जवाबी कार्रवाई बहुत जरूरी थी और इसमें उनका जो भी नुकसान हुआ वे खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं। क्या अब पाकिस्तान सुधरेगा और क्या आतंकवाद बंद करेगा, इस पर पूनम पाण्डे की एक्सपर्ट से खास बातचीत: ‘हर फौजी लड़ाई की कीमत जानता है’अंडमान निकोबार कमांड के पूर्व कमांडर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह (रिटायर्ड) कहते हैं कि भारत हमेशा ही कहता रहा है कि हम किसी दूसरे की जमीन नहीं चाहते लेकिन अपनी जमीन किसी भी सूरत में प्रोटेक्ट करेंगे। जो हमारे देश की तरफ बुरी निगाह डालेगा, रेड लाइन कॉस करेगा तो भारत क्या कर सकता है ये दुनिया ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए देख लिया है। लड़ाई किसी के हित में नहीं होती है। लड़ाई खत्म हो जाती है लोग अपने जीवन में चले जाते हैं लेकिन जिन परिवारों पर इनका सीधा असर होता है, उनका जीवन हमेशा के लिए बदल जाता है। कोई भी फौजी लड़ाई की कीमत जानता है। जब जरूरत हुई तो जी जान से लड़ेगे लेकिन यह भी जरूरी है कि दूसरे के बनाए जाल में नहीं फंसना चाहिए। हमने आतंकवाद और पाकिस्तान को जो करारा जवाब दिया है, वह काफी था। फौज में सिखाते हैं कि जोश के साथ होश भी होना चाहिए। भारत ने बहुत ही कैलिबरेटेड (नपा-तुला) और मैच्योर रिस्पॉन्स दिया है। हमने उन्हें दिखा दिया कि आतंकवाद का क्या नतीजा होगा। हर एक लोकतांत्रिक देश की एक फौज होती है लेकिन पाकिस्तान के केस में एक फौज के पास एक देश है। उस फौज के रिलिवेंट रहने के लिए उनका भारत के साथ कुछ न कुछ संघर्ष करना जरूरी है। इसलिए उनकी फौज नहीं चाहती कि ये मसला खत्म हो। हमारे यहां हो रही तरक्की से उन्हें कष्ट हो रहा है। इसलिए पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आएगा ऐसा लगता नहीं, हमें अलर्ट रहना है और रेड लाइन क्रॉस हुई तो पाकिस्तान को मालूम है कि इंडियन आर्म्ड फोर्सेस क्या कर सकती हैं। ‘पाकिस्तान सुधरेगा ऐसा लगता नहीं’पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (रिटायर्ड) का कहना है कि पाकिस्तान की फौज का अस्तित्व ही भारत विरोध से है। इसलिए पाकिस्तान सुधरेगा ऐसा लगता नहीं। 2016 में जब सर्जिकल स्ट्राइक की तो पाकिस्तान को भारी कीमत चुकानी पड़ी। उसके बाद से कोई बड़ा टेरर अटैक नहीं हुआ। फिर पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ तो पाकिस्तान के अंदर जाकर स्ट्राइक की और आतंकी ठिकाने नष्ट किए। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी भारत ने आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया। जब पाकिस्तानी फौज ने हमारे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया तब भारत ने भी टारगेट किया और उनके एयरबेस और एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त किए। भारत ने दिखा दिया कि हम उन्हें कभी भी, कहीं भी जब चाहें उतनी ताकत से हिट कर सकते हैं। जिसके बाद वे निगोशिएशन के लिए आए। पाकिस्तान को भारी कीमत चुकानी पड़ी है लेकिन लगता नहीं कि पाकिस्तान अपनी प्रॉक्सी वॉर पॉलिसी बदलेगा। वह आतंकवाद को खत्म करना अफोर्ड नहीं कर सकता क्योंकि यह उसकी पॉलिसी है। हमें आगे अब नया सोचना होगा। आगे भी हमें पाकिस्तान को सरप्राइज करने के लिए और कोई भी गलत हरकत करने पर उसे करारा जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा। कश्मीर में शांति और विकास पाकिस्तान को बर्दाश्त नहीं हुआ, यह पाकिस्तान के इंटरेस्ट में नहीं था। पाकिस्तान आगे भी कोशिश करेगा कि वह दिक्कत करे लेकिन जिस तरह इंडियन आर्म्ड फोर्सेस ने जवाब दिया है उससे शायद वह कॉन्फ्लिक्ट का स्केल ज्यादा बढ़ाना ना चाहे। ‘हम जरूरत पड़ने पर युद्ध के लिए तैयार हैं’पूर्व आर्मी चीफ जनरल एम एम नरवणे (रिटायर्ड) ने कहा, पुणे में डिफेंस एंड इकॉनमिक पॉलिसी फोरम में बोलते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि युद्ध कोई बॉलिवुड फिल्म नहीं है और यह हमेशा आखिरी विकल्प होना चाहिए। एक सैनिक होने के नाते अगर मुझे आदेश मिलेगा तो मैं युद्ध करूंगा, लेकिन युद्ध कोई रोमांटिक चीज नहीं है। यह कोई बॉलिवुड फिल्म नहीं है। यह बेहद गंभीर विषय है। सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिकों खासकर बच्चों पर युद्ध का गहरा मानसिक प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनका दर्द पीढ़ियों तक झेलना पड़ता है। जिन्होंने युद्ध की वीभत्स तस्वीरें देखी हैं, वे बीस साल बाद भी पसीने-पसीने होकर नींद से जागते हैं और उन्हें मानसिक उपचार की जरूरत होती है। हम जरूरत पड़ने पर युद्ध के लिए तैयार हैं लेकिन शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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