Next Story
Newszop

International Tiger Day: मां ने मरने के लिए छोड़ा, इंसानों संग पली-बढ़ी..बाघिन की कुत्ते ने ले ली जान

Send Push
बाघ..ये नाम सुनते ही जंगल के जिस सूरमा की तस्वीर सामने आती है, उसे सोचकर कोई भी खौफ खा सकता है। अपने शिकार में बिल्कुल भी रहम नहीं बरतने वाले टाइगर के किस्सों से किताबें भरी पड़ी हैं। लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि एक टाइगर जो बड़े से बड़े जानवर को भी धूल चटा दे, उसकी जान एक कुत्ते ने ले ली? जी हां, यह सच है। भारत के ही ओडिशा में यह हैरान करने वाला वाकया सामने आया था।



हालांकि ये कहानी सिर्फ एक कुत्ते के हमले में बाघ के मारे जाने की नहीं है। ये कहानी शुरू होती है इंसान और जानवर के बीच अनोखे रिश्ते से। वो रिश्ता, जिसमें जंगल और इंसानी बस्ती के बीच खिंची लकीर मिट गई। बेइंतहा प्यार और भरोसे की अनूठी कहानी। International Tiger Day के मौके पर ओडिशा की बाघिन खैरी की कहानी हम आपके लिए लेकर आए हैं, जिसे एक इंसान ने अपने बच्चे की तरह पाला। वो इंसान जिसे अपनी 'बेटी' से जुदाई ने इस कदर तोड़ा कि उसने दुनिया ही छोड़ दी।



मां ने छोड़ा, सरोज राज चौधरी ने पाला बात शुरू होती है ओडिशा के मयूरभंज जिले के सिम्लीपाल टाइगर रिजर्व से। 3 अक्टूबर, 1974 को वन अधिकारी और टाइगर रिजर्व के फाउंडर डायरेक्टर सरोज राज चौधरी के पास गांव वाले एक नन्ही बाघिन को ले आए। उसकी मां ने उसे मरने के लिए छोड़ दिया था। कहते हैं कि जैसे ही उसे सरोज राज के पास लाया गया, वो कमजोर हालत में होने के बावजूद उनकी गोद में चढ़ गई। बस यहीं से शुरू हो गया एक अनोखा प्यार का रिश्ता।



नदी पर मिला बाघिन को नाम सरोज राज चौधरी ने इस बाघिन का नाम पास की नदी खैरी के नाम पर रखा। बाघिन को घर से इतना प्यार मिलने लगा कि जब तक सरोज राज की पत्नी निहार खाना नहीं खिलाती, वो खाने को देखती तक नहीं। यही नहीं उनके कुत्ते से भी उसकी दोस्ती हो गई। दूर-दूर से पर्यटक इस अनोखे रिश्ते को देखने के लिए आने लगे। इसकी सूचना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक भी पहुंची।



खैरी भूल गई अपना अस्तित्व खैरी बड़ी हो रही थी और उसे अब साथी की जरूरत थी। सरोज राज ने उसे कई बार जंगल में खुला छोड़ने की कोशिश की। लेकिन इंसानों के बीच रहते-रहते खैरी शिकार करना भूल चुकी थी। जंगल में जाती तो अक्सर साथी बाघों से चोट खाकर वापस लौटती। जंगल में रहने वाले बाघ-बाघिन उसे अपनाने को तैयार ही नहीं थे क्योंकि उसमें से इंसानों की गंध आती थी। फिर 28 मार्च, 1981 का वो दुर्भाग्यशाली दिन आया।





बाघिन को हुआ रैबिज वन अधिकारी सरोज राज किसी काम से बाहर गए हुए थे। तभी अचानक बंगले में एक आवारा कुत्ता घुस आया। खैरी ने उसे दौड़ाने के लिए उस पर हमला कर दिया। ऐसे पहले कि वो कुत्ता बाघिन के जोरदार हमले से दुनिया छोड़ता, उसने उसे काट लिया। कुत्ते को रैबिज था और खैरी के शरीर में भी यह जानलेवा वायरस फैलने लगा। उसने दो महीने तक इस वायरस से जंग लड़ी।



फिर सरोज ने कहा अलविदा खैरी का दर्द बर्दाश्त से बाहर हो रहा था और सरोज के लिए उसे इस तरह तड़पता देखना मुश्किल हो चला था। आखिरकार उन्होंने एक दिन मुश्किल फैसला लिया और उसे दवा की ओवरडोज देकर इस दर्द से मुक्ति दिला दी। मगर खैरी से जुदाई ने सरोज राज को तोड़ दिया। एक साल से भी कम समय के भीतर उनकी भी मृत्यु हो गई।

Loving Newspoint? Download the app now