नई दिल्ली: देश में एक बार फिर किसान आंदोलन की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। किसानों के संगठन भारतीय किसान समन्वय समिति(आईसीसीएफएम) ने केंद्र सरकार से अमेरिका के साथ प्रस्तावित व्यापार समझौते से कृषि क्षेत्र को बाहर रखने की मांग की है। किसानों को डर है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो भारतीय किसानों के हितों को गंभीर नुकसान होगा। आईसीसीएफएम ने सरकार से अपील की है कि वह भारत और अमेरिका के बीच होने वाले व्यापार समझौते से कृषि को पूरी तरह से बाहर रखे। उसका कहना है कि ऐसा करने से ही भारतीय किसानों के हितों की रक्षा हो सकेगी। आईसीसीएफएम में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र समेत 11 राज्यों के किसान संगठन शामिल हैं। यह संगठन किसानों के मुद्दों पर काम करता है।
आईसीसीएफएम ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर किसानों के हितों को अनदेखा किया गया तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे। हालांकि, संगठन को उम्मीद है कि सरकार क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से हटने के फैसले की तरह ही इस मामले में भी किसानों के हित में फैसला लेगी।
किसान संगठन ने पीयूष गोयल को लिखा पत्र
आईसीसीएफएम ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में किसान संगठन ने कहा है कि अगर अमेरिका से आने वाले कृषि उत्पादों को बिना टैरिफ के भारत में आने दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। अमेरिका और चीन के बीच 2018 से व्यापार युद्ध चल रहा है। इसका असर अमेरिका के कृषि निर्यात पर पड़ा है। अमेरिका का कृषि व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो गया है। इसलिए, अमेरिका अपने कृषि उत्पादों को भारत जैसे बाजारों में बेचना चाहेगा। उदाहरण के लिए अमेरिका से सोयाबीन का निर्यात 2022 में 34.4 अरब डॉलर था, जो 2024 में घटकर 24.5 अरब डॉलर हो गया। इसी तरह, मक्का निर्यात 18.6 अरब डॉलर से घटकर 13.9 अरब डॉलर हो गया।
आईसीसीएफएम का कहना है कि अमेरिकी सरकार दुनिया में सबसे ज्यादा कृषि सब्सिडी देने वाली सरकारों में से एक है। अमेरिका के 2024 के फार्म बिल में कृषि सब्सिडी के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर आवंटित किए गए हैं। इतनी बड़ी सब्सिडी की वजह से अमेरिका में कृषि उत्पादों का आयात कम होता है। साथ ही, अमेरिकी उत्पादों को कम कीमत पर दूसरे देशों में बेचा जा सकता है।
डेयरी किसानों को बड़े नुकसान की आशंका
आईसीसीएफएम का तर्क है कि अगर ऐसे सब्सिडी वाले अमेरिकी उत्पादों को भारत में आने दिया गया तो विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत का विरोध कमजोर हो जाएगा। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत का डेयरी क्षेत्र अमेरिकी उत्पादों के लिए खुल गया तो भारतीय डेयरी किसानों को सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर डेयरी क्षेत्र को खोला गया तो भारत में दूध की कीमतें कम से कम 15 फीसदी तक गिर सकती हैं। इससे छोटे डेयरी किसानों की आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा।
अमेरिका की तीखी आलोचना की
किसान संगठन ने भारतीय किसानों की आजीविका को खतरे में डालने के लिए अमेरिका की आलोचना की है। अमेरिका ने भारत सरकार की ओर से सार्वजनिक खरीद योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली मामूली सहायता को WTO नियमों का उल्लंघन बताया है। आईसीसीएफएम का कहना है कि यह एक समान अवसर नहीं है। अमेरिका के 2019 के फार्म बिल में अमेरिकी किसानों के लिए 867 अरब डॉलर की सब्सिडी आवंटित की गई थी। वहीं, ओईसीडी के अध्ययन के अनुसार, 2000-2016 के दौरान भारतीय किसानों के लिए कुल उत्पादक समर्थन अनुमान नकारात्मक 14 फीसदी था।
आईसीसीएफएम ने खाद्य तेल के मुद्दे पर भी बात की। उसने कहा कि अमेरिका दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सोयाबीन तेल का निर्यातक है। भारत कभी खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर था, लेकिन अब उसे अपनी जरूरत का लगभग 70 फीसदी आयात करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार ने किसान विरोधी व्यापार नीतियां अपनाई हैं। 31 मई को भारत ने कच्चे पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया। सरकार ने कहा कि ऐसा महंगाई को कम करने के लिए किया गया है। आईसीसीएफएम का कहना है कि इस शुल्क कटौती से बड़े आयातकों को फायदा होगा। ये आयातक कच्चे खाद्य तेल का आयात और प्रसंस्करण करते हैं।
आईसीसीएफएम के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़े अमेरिकी कृषि व्यवसायों का समर्थन किया है। लेकिन, भारत के नेताओं को छोटे किसानों की रक्षा करनी चाहिए। ये किसान ही देश को भोजन देते हैं। भारत में खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने की क्षमता है। आयात शुल्क कम करने से घरेलू उत्पादन कम होगा और कंपनियों को फायदा होगा। इससे भारतीय किसानों को नुकसान होगा।
आईसीसीएफएम ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर किसानों के हितों को अनदेखा किया गया तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे। हालांकि, संगठन को उम्मीद है कि सरकार क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से हटने के फैसले की तरह ही इस मामले में भी किसानों के हित में फैसला लेगी।
किसान संगठन ने पीयूष गोयल को लिखा पत्र
आईसीसीएफएम ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में किसान संगठन ने कहा है कि अगर अमेरिका से आने वाले कृषि उत्पादों को बिना टैरिफ के भारत में आने दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। अमेरिका और चीन के बीच 2018 से व्यापार युद्ध चल रहा है। इसका असर अमेरिका के कृषि निर्यात पर पड़ा है। अमेरिका का कृषि व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो गया है। इसलिए, अमेरिका अपने कृषि उत्पादों को भारत जैसे बाजारों में बेचना चाहेगा। उदाहरण के लिए अमेरिका से सोयाबीन का निर्यात 2022 में 34.4 अरब डॉलर था, जो 2024 में घटकर 24.5 अरब डॉलर हो गया। इसी तरह, मक्का निर्यात 18.6 अरब डॉलर से घटकर 13.9 अरब डॉलर हो गया।
आईसीसीएफएम का कहना है कि अमेरिकी सरकार दुनिया में सबसे ज्यादा कृषि सब्सिडी देने वाली सरकारों में से एक है। अमेरिका के 2024 के फार्म बिल में कृषि सब्सिडी के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर आवंटित किए गए हैं। इतनी बड़ी सब्सिडी की वजह से अमेरिका में कृषि उत्पादों का आयात कम होता है। साथ ही, अमेरिकी उत्पादों को कम कीमत पर दूसरे देशों में बेचा जा सकता है।
डेयरी किसानों को बड़े नुकसान की आशंका
आईसीसीएफएम का तर्क है कि अगर ऐसे सब्सिडी वाले अमेरिकी उत्पादों को भारत में आने दिया गया तो विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत का विरोध कमजोर हो जाएगा। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत का डेयरी क्षेत्र अमेरिकी उत्पादों के लिए खुल गया तो भारतीय डेयरी किसानों को सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर डेयरी क्षेत्र को खोला गया तो भारत में दूध की कीमतें कम से कम 15 फीसदी तक गिर सकती हैं। इससे छोटे डेयरी किसानों की आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा।
अमेरिका की तीखी आलोचना की
किसान संगठन ने भारतीय किसानों की आजीविका को खतरे में डालने के लिए अमेरिका की आलोचना की है। अमेरिका ने भारत सरकार की ओर से सार्वजनिक खरीद योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली मामूली सहायता को WTO नियमों का उल्लंघन बताया है। आईसीसीएफएम का कहना है कि यह एक समान अवसर नहीं है। अमेरिका के 2019 के फार्म बिल में अमेरिकी किसानों के लिए 867 अरब डॉलर की सब्सिडी आवंटित की गई थी। वहीं, ओईसीडी के अध्ययन के अनुसार, 2000-2016 के दौरान भारतीय किसानों के लिए कुल उत्पादक समर्थन अनुमान नकारात्मक 14 फीसदी था।
आईसीसीएफएम ने खाद्य तेल के मुद्दे पर भी बात की। उसने कहा कि अमेरिका दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सोयाबीन तेल का निर्यातक है। भारत कभी खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर था, लेकिन अब उसे अपनी जरूरत का लगभग 70 फीसदी आयात करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार ने किसान विरोधी व्यापार नीतियां अपनाई हैं। 31 मई को भारत ने कच्चे पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया। सरकार ने कहा कि ऐसा महंगाई को कम करने के लिए किया गया है। आईसीसीएफएम का कहना है कि इस शुल्क कटौती से बड़े आयातकों को फायदा होगा। ये आयातक कच्चे खाद्य तेल का आयात और प्रसंस्करण करते हैं।
आईसीसीएफएम के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़े अमेरिकी कृषि व्यवसायों का समर्थन किया है। लेकिन, भारत के नेताओं को छोटे किसानों की रक्षा करनी चाहिए। ये किसान ही देश को भोजन देते हैं। भारत में खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने की क्षमता है। आयात शुल्क कम करने से घरेलू उत्पादन कम होगा और कंपनियों को फायदा होगा। इससे भारतीय किसानों को नुकसान होगा।
You may also like
गांधी परिवार का इंतजार कर रही हैं देश की जेलें : सीएम हिमंता बिस्वा सरमा
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पूरी तरह निष्पक्ष : चुनाव आयोग
बंगालियों की फिक्र तो बंगाल में सीएए लागू करें ममता बनर्जी : हिमंता बिस्वा सरमा
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ आशीष चौहान की पुस्तक 'स्थितप्रज्ञ' के मराठी संस्करण का हुआ विमोचन
नहीं पूरी हुई दहेज की मांग तो पति ने हैवानों के हवाले किया पत्नी को, नरक से भाग कर ऐसे बचाई जान