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कोई राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बेंगलुरु भगदड़ पर रिपोर्ट का खुलासा करें, कर्नाटक HC की सरकार को फटकार

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बेंगलुरु : कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी दस्तावेज को सीलबंद रखने में राष्ट्रीय सुरक्षा या जनहित का कोई मामला शामिल नहीं है। कोर्ट ने 4 जून को एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ की 12 जून की स्टेटस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। इस भगदड़ में 11 लोगों की जान चली गई थी।



कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार की जमा की गई रिपोर्ट और उसके अनुवाद को कोर्ट के रिकॉर्ड में शामिल किया जाए। साथ ही, इसे अन्य प्रतिवादियों जैसे कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन, रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और DNA एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के साथ भी साझा किया जाए। एडवोकेट-जनरल शशिकिरण शेट्टी ने पहले इस रिपोर्ट को सीलबंद रखने का अनुरोध किया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।



सीलबंद कार्यवाही से कोर्ट का इनकारकार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह विस्तृत आदेश जारी किया। कोर्ट ने शशिकिरण शेट्टी के तर्कों को अपर्याप्त माना। कोर्ट ने कहा कि सीलबंद कार्यवाही केवल उन मामलों तक ही सीमित है जिनमें जनहित, राष्ट्रीय सुरक्षा या गोपनीयता के अधिकार शामिल हों।



कोर्ट ने खारिज किया सरकार का तर्कसरकार ने यह तर्क दिया था कि रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से मजिस्ट्रियल जांच या न्यायिक आयोग प्रभावित हो सकता है। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह चिंता सीलबंद कार्यवाही के स्थापित नियमों के अनुरूप नहीं है। न तो कोई सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज और न ही कोई अखिल भारतीय सेवा अधिकारी इन जांचों का नेतृत्व कर रहा है, इसलिए राज्य की स्टेटस रिपोर्ट से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।



हाई कोर्ट ने क्या कहाकोर्ट ने यह कार्यवाही इस त्रासदी के कारणों को समझने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए शुरू की है। कोर्ट का मानना है कि रिपोर्ट साझा करने से प्रतिवादियों को 4 जून की घटना के तथ्यों और परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। इससे वे कोर्ट को भी बेहतर ढंग से सहायता कर पाएंगे।



पीड़ितों को राहतकोर्ट इस बात से भी सहमत है कि यह कार्यवाही BNSS की धारा 192(5) के अंतर्गत नहीं आती है। इसलिए, जांच की गोपनीयता बनाए रखने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि जांच रिपोर्ट आने के बाद भी तथ्य नहीं बदलेंगे। बेंच ने कहा कि इन दस्तावेज़ों को सीलबंद रखने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा या जनहित का कोई मामला शामिल नहीं है। कोर्ट का यह फैसला पीड़ितों के परिवारों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है। अब उन्हें पता चल सकेगा कि आखिर उस दिन स्टेडियम में क्या हुआ था।

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