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अमेरिका के खिलाफ भारत का यह कैसा प्रस्ताव, 9 जुलाई की डेडलाइन से पहले इस एक्शन का क्या है मतलब?

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नई दिल्‍ली: भारत ने अमेरिका के खिलाफ जवाबी टैर‍िफ लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के तहत है। अमेरिका ने ऑटोमोबाइल सेक्‍टर पर सुरक्षा के नाम पर टैरिफ लगाए थे। इसके जवाब में भारत ने यह कदम उठाया है। भारत अमेरिका के कुछ खास उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाएगा। इससे अमेरिका से आने वाले सामान महंगे हो जाएंगे। यह एक तरह का 'जैसे को तैसा' वाला कदम है। अमेरिका ने अपने घरेलू ऑटोमोबाइल (और स्टील / एल्यूमीनियम) उद्योग को बचाने के लिए भारत सहित कुछ देशों से आयात होने वाले सामानों पर 'सुरक्षा शुल्क' (सेफगार्ड टैरिफ) लगाए थे। इन शुल्कों से भारत के निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ा है। इसके जवाब में भारत ने भी यह तय किया है कि वह अमेरिका से आने वाले कुछ विशेष उत्पादों पर टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाएगा। जब किसी सामान पर टैरिफ बढ़ाया जाता है तो वह आयातित सामान महंगा हो जाता है। इससे घरेलू बाजार में उसकी मांग कम हो जाती है।



भारत ने डब्ल्यूटीओ को इस बारे में जानकारी दी है। भारत ने बताया कि अमेरिका ने जो शुल्क लगाए हैं, वे नियमों के अनुसार नहीं हैं। इसलिए भारत को भी जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार है।



डब्ल्यूटीओ में भारत की तरफ से एक सूचना जारी की गई है। इसके अनुसार, 'रियायतों या अन्य दायित्वों के प्रस्तावित निलंबन का रूप अमेरिका में उत्पादित चुनिंदा उत्पादों पर शुल्क में बढ़ोतरी के रूप में होगा।' इसका मतलब है कि भारत अमेरिका के कुछ चुने हुए उत्पादों पर टैक्स बढ़ाएगा। भारत ने डब्ल्यूटीओ के माल व्यापार परिषद को यह सूचना दी है। इसमें बताया गया है कि भारत कुछ नियमों के तहत अपनी रियायतों को रोकने का प्रस्ताव रखता है। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि अमेरिका ने भारत से आने वाले वाहन के सामान पर टैरिफ बढ़ा दिया है।



अमेर‍िका ने WTO को क‍िया दरक‍िनार

अमेरिका ने इस साल 26 मार्च को एक फैसला लिया था। इसके तहत यात्री वाहन, हल्के ट्रक और भारत से आने वाले कुछ वाहन के सामान पर 25 फीसदी शुल्क बढ़ा दिया गया। यह नियम 3 मई, 2025 से लागू है और हमेशा के लिए जारी रहेगा। अमेरिका ने इन उपायों के बारे में डब्ल्यूटीओ को नहीं बताया है। लेकिन, ये मुख्य रूप से सुरक्षा उपाय हैं।



भारत का कहना है कि अमेरिका के ये उपाय गैट (व्यापार और शुल्क पर सामान्य समझौता) 1994 और सुरक्षा उपायों पर समझौते के नियमों का पालन नहीं करते हैं।



भारत ने कहा कि अमेरिका ने शुल्क लगाने से पहले भारत से सलाह नहीं ली। इसलिए भारत को भी रियायतों को रोकने का अधिकार है। इसका मतलब है कि भारत अमेरिका के सामान पर टैक्स बढ़ाकर अपना विरोध जता सकता है।



बयान में कहा गया है, 'चूंकि इन शुल्क पर भारत से परामर्श नहीं हुआ है, इसलिए देश रियायतों या अन्य दायित्वों को निलंबित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।' यानी, भारत को यह अधिकार है कि वह अमेरिका के साथ व्यापार में कुछ छूट को रोक दे। यह कदम अमेरिका के शुल्क के जवाब में उठाया गया है।



इस एक्शन का क्या है मतलब?भारत इस कदम से अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करना चाहता है। जब अमेरिका भारतीय उत्पादों पर शुल्क लगाता है तो वे अमेरिका में महंगे हो जाते हैं और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाती है। जवाबी शुल्क लगाकर भारत भी अमेरिका पर दबाव डालना चाहता है कि वह अपने शुल्कों को हटाए।



9 जुलाई से पहले यह घटनाक्रम काफी अहम है। भारत और अमेरिका इसके पहले एक मिनी समझौता कर सकते हैं। यह डेडलाइन काफी महत्वपूर्ण है। अगर 9 जुलाई तक भारत और अमेरिका के बीच व्यापार विवाद पर कोई समझौता नहीं हो पाता है तो भारत को 26% तक के जवाबी शुल्क का सामना करना पड़ सकता है। यह एक तरह का दबाव बनाने का तरीका है ताकि दोनों देश इस डेडलाइन से पहले किसी समझौते पर पहुंच सकें।



भारत विश्व व्यापार संगठन के नियमों का इस्‍तेमाल करके दिखा रहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का पालन करता है। साथ ही अन्यायपूर्ण व्यापारिक प्रथाओं के खिलाफ खड़ा है। WTO के नियम सदस्य देशों को कुछ खास परिस्थितियों में जवाबी शुल्क लगाने की अनुमति देते हैं।



यह कदम अमेरिका को मजबूत मैसेज है कि भारत उसके एकतरफा शुल्कों को स्वीकार नहीं करेगा। भारत चाहता है कि अमेरिका अपने शुल्कों को हटाए और बदले में वह भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ न बढ़ाए। कुछ हद तक यह भारत के घरेलू उद्योगों को भी बढ़ावा देने का प्रयास है, क्योंकि अमेरिकी सामान महंगे होने पर घरेलू उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।

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