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Pitru Paksha 2025 : श्राद्ध के 12 भेद और 72 अवसर, क्या कहता है धर्मशास्त्र

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श्राद्ध के 72 अवसर - वर्षभर में 72 श्राद्ध के अवसर आते हैं, बारह अमावस्याऐं, बारह संक्रांतियां, चौदह मन्वादि एवं चार युगादि तिथियां, चार अवन्तिकाऐं (आषाढ़ी-आषाढ़ में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का योग, कार्तिकी, माघी, वैशाखी), सोलह अष्टिकाऐं (अगहन, पूस, माघ, फाल्गुन, दोनों पक्षों की सप्तमी-अष्टमी तिथियां), छः अन्वष्टकाऐं (पूस, माघ, फाल्गुन की अष्टका के पीछे वाली नवमी तिथियां), दो निधन तिथियां एवं दो अयन योग (उत्तरायण, दक्षिाणायन), ये 72 श्राद्ध के अवसर हैं। श्राद्ध कमलाकर में श्राद्ध के 72 अवसरों के बारे में विस्तृत रूप से चचार्य की गई है।



श्राद्ध के 12 भेद -
विश्वामित्र स्मृति एवं भविष्य पुराण के अनुसार नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि (नान्दी), सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धि, कर्मांग, दैविक, यात्रा एवं पुष्टिश्राद्ध, ये श्राद्ध के बारह भेद हैं।



श्राद्ध के अधिकारी -
पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए, पुत्र न हो तो स्त्री श्राद्ध करे। पत्नी के अभाव में सहोदर भाई और उसके भी अभाव में सपिण्डों को श्राद्ध करना चाहिए। जामाता एवं दौहित्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। धर्मशास्त्रों में यहां तक वर्णित है कि सभी के अभाव में राजा को मृत व्यक्ति के धन से उसका श्राद्ध करना चाहिए, क्योंकि वह सभी का बांधव कहा जाता है। दत्तक पुत्र तथा अनुपवीत (चूड़ासंस्कृत) पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।



श्राद्ध में ब्राह्मणों की संख्या -
मनुस्मृति, विष्णु पुराण एवं पद्म पुराण के माध्यम से कहा गया है कि श्राद्ध में अधिक ब्राह्मणों का निमंत्रण ठीक नहीं, देव कार्य में दो, पितृ कार्य में तीन ब्राह्मण पर्याप्त हैं, अथवा उभयत्र एक ब्राह्मण ही आमन्त्रित करें, क्योंकि ब्राह्मणों का विस्तार, उचित सत्कार आदि में बाधक बन जाता है, जिससे निःसन्देह अकल्याण होता है।



धर्मशास्त्रों में श्राद्ध आदि कर्म के निमित्त अनेकानेक निर्देश प्राप्त होते हैं, श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्व उनको बिठाकर श्रद्धापूर्वक उनके पैर धोने चाहिए। श्राद्धकर्ता को श्राद्ध के दिन किसी अन्य व्यक्ति के यहां का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के लिए पर्याप्त धन न होने पर केवल शाक से श्राद्ध करना चाहिए, यदि शाक भी न हो, तो घास काटकर गाय को खिला देने से श्राद्ध सम्पन्न हो जाता है। यदि किसी कारणवश घास भी उपलब्ध न हो, तो किसी एकांत स्थान पर जाकर श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक अपने हाथों को ऊपर उठाते हुए पितरों से प्रार्थना करें, ‘हे मेरे पितृगण! मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त न तो धन है, न धान्य आदि. हां, मेरे पास आपके लिये श्रद्धा और भक्ति है. मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं. आप तृप्त हो जाएं. मैनें दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है।’

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