सुबोध घिल्डियाल: राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक पहचान और छवि को शुरू से ही पदयात्राओं के इर्द-गिर्द गढ़ा है। बिहार से रविवार को शुरू हुई ‘वोट अधिकार यात्रा’ उनकी पांचवीं बड़ी पदयात्रा है। इससे 508 दिन पहले उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर और मणिपुर से मुंबई तक भारत जोड़ो यात्रा की थी, जो सफल रही। बिहार में अपने मौजूदा अभियान के तहत वह पैदल और वाहन, दोनों तरह से चलेंगे। 20 जिलों से होते हुए वह 1300 किमी की दूरी तय करेंगे।
बस मौका चाहिए । राजनीति में अपने शुरुआती दिनों में भी राहुल ने पश्चिम यूपी के भट्टा-पारसौल में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पदयात्रा की थी। किसानों के मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने देवरिया से दिल्ली तक ‘किसान यात्रा’ की। 2015 में उन्होंने केदारनाथ की यात्रा की। इसका मकसद यह बताना था कि 2013 में आई आपदा के बाद स्थितियां सामान्य हो चुकी हैं। ये सारे उदाहरण बताते हैं कि जहां भी थोड़ी-सी संभावना होती है, राहुल गांधी सड़क पर उतर पड़ते हैं।
SIR का साया । बिहार यात्रा लेकिन पिछले किसी अभियान जैसी नहीं है। यह उस समय हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष की मांगों को स्वीकार करते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि नए ड्राफ्ट रोल में जिनके नाम हटाए गए हैं, उनकी जानकारी सार्वजनिक की जाए। बिहार में इसी साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके कुछ महीनों पहले जब अचानक से Special Intensive Revision यानी SIR की प्रक्रिया शुरू हुई, तो तमाम संदेह उठने लगे।
विपक्ष का डर । चुनाव आयोग के साथ बैठक ने विपक्ष के इस डर को गहरा दिया कि राज्य के बाहर पलायन कर चुके मजदूर, गरीब और हाशिये पर खड़े लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। इस वर्ग को BJP विरोधी माना जाता है। SIR के विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। यह सब कुछ संसद के मॉनसून सत्र के दौरान हुआ, जिससे विपक्ष को एक बड़ा मंच भी मिल गया।
ऐसे बनी संभावना । राहुल ने 7 अगस्त को दावा किया कि बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में 2024 के आम चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई थी। इस दावे ने देश को चौंका दिया और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव व 2024 लोकसभा चुनाव की कुछ सीटों के नतीजों पर कांग्रेस जो संदेह जताती रही है, उसे बल मिला। जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया, तो माना गया कि राहुल की मेहनत रंग लाई है। इसी से यह संभावना भी टटोली गई कि क्या एक और यात्रा हो सकती है, जो विरोध और चुनाव को साथ लेकर चले?
नई पहचान । SIR विवाद के बाद RJD, CPI-ML और अन्य सहयोगी दलों ने यात्रा के विचार का स्वागत किया। 16 दिनों की यह यात्रा 100 से 125 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। इसमें बेहद पिछड़े वर्ग, एससी, एसटी, मुस्लिम और गरीब तबके को साधने की कोशिश होगी। राहुल ने जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा हटाने, अत्याचारों को उजागर करने और धर्मनिरपेक्षता को मिलाकर एक नई पहचान गढ़ी है। यह मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और दीपंकर भट्टाचार्य की CPI-ML की लाइन पर है।
यूपी का उदाहरण । राहुल गांधी की बिहार यात्रा का मकसद बहुजन समाज को आकर्षित करना और नीतीश कुमार की JDU व चिराग पासवान की LJP के वोट बैंक में सेंध लगाना है। अखिलेश यादव ने कुछ ऐसी ही रणनीति पिछले साल यूपी में बनाई थी, जिसमें वह सफल रहे। BJP के अत्यंत पिछड़ा वर्ग के जवाब में समाजवादी पार्टी ने अपनी पहचान PDA यानी पिछड़े, दलित व आदिवासी वर्ग के दल के रूप में बनाई। राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के अजेंडे ने अखिलेश के साथ मिलकर काम किया और पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को शानदार जीत मिली।
सपा की जीत । 2004 से लेकर अब तक ऐसे तमाम सबूत हैं, जो बताते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस हाशिये पर है, वहां राहुल गांधी की मौजूदगी से उनके सहयोगी दल या विचारधारा से मेल खाने वाले प्रतिद्वंद्वियों को ज्यादा फायदा होता है। यूपी में 2024 में महागठबंधन की जीत के पीछे राहुल की अहम भूमिका को अंदर-अंदर स्वीकार किया जाता है। चर्चा तो यह तक है कि 2007 में उन्होंने यूपी में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अभियान चलाया था, उससे BSP खलनायक बन गई और इसी से 2012 में सपा की जीत का आधार बना। राहुल फैक्टर ने पिछले साल महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान भी काम किया। वहीं, तमिलनाडु में कांग्रेस के हाशिये की पार्टी होने के बावजूद DMK राहुल की साख को महत्व देती है।
फिर होगी यात्रा। सासाराम में तेजस्वी यादव जीप चला रहे थे और राहुल बगल की सीट पर बैठे थे। यह तस्वीर इशारा करती है कि अपने राज्य में तेजस्वी लीड रोल में हैं। RJD के पास संगठन है, जबकि कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व और विचारधारा लेकर आती है, जिसका चेहरा राहुल हैं। बिहार चुनाव अभी कुछ महीनों दूर हैं। ऐसे में यह यात्रा आखिरी नहीं हो सकती। उम्मीद है कि चुनाव करीब आने पर राहुल फिर सड़क पर उतरेंगे।
बस मौका चाहिए । राजनीति में अपने शुरुआती दिनों में भी राहुल ने पश्चिम यूपी के भट्टा-पारसौल में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पदयात्रा की थी। किसानों के मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने देवरिया से दिल्ली तक ‘किसान यात्रा’ की। 2015 में उन्होंने केदारनाथ की यात्रा की। इसका मकसद यह बताना था कि 2013 में आई आपदा के बाद स्थितियां सामान्य हो चुकी हैं। ये सारे उदाहरण बताते हैं कि जहां भी थोड़ी-सी संभावना होती है, राहुल गांधी सड़क पर उतर पड़ते हैं।
SIR का साया । बिहार यात्रा लेकिन पिछले किसी अभियान जैसी नहीं है। यह उस समय हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष की मांगों को स्वीकार करते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि नए ड्राफ्ट रोल में जिनके नाम हटाए गए हैं, उनकी जानकारी सार्वजनिक की जाए। बिहार में इसी साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके कुछ महीनों पहले जब अचानक से Special Intensive Revision यानी SIR की प्रक्रिया शुरू हुई, तो तमाम संदेह उठने लगे।
विपक्ष का डर । चुनाव आयोग के साथ बैठक ने विपक्ष के इस डर को गहरा दिया कि राज्य के बाहर पलायन कर चुके मजदूर, गरीब और हाशिये पर खड़े लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। इस वर्ग को BJP विरोधी माना जाता है। SIR के विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। यह सब कुछ संसद के मॉनसून सत्र के दौरान हुआ, जिससे विपक्ष को एक बड़ा मंच भी मिल गया।
ऐसे बनी संभावना । राहुल ने 7 अगस्त को दावा किया कि बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में 2024 के आम चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई थी। इस दावे ने देश को चौंका दिया और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव व 2024 लोकसभा चुनाव की कुछ सीटों के नतीजों पर कांग्रेस जो संदेह जताती रही है, उसे बल मिला। जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया, तो माना गया कि राहुल की मेहनत रंग लाई है। इसी से यह संभावना भी टटोली गई कि क्या एक और यात्रा हो सकती है, जो विरोध और चुनाव को साथ लेकर चले?
नई पहचान । SIR विवाद के बाद RJD, CPI-ML और अन्य सहयोगी दलों ने यात्रा के विचार का स्वागत किया। 16 दिनों की यह यात्रा 100 से 125 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। इसमें बेहद पिछड़े वर्ग, एससी, एसटी, मुस्लिम और गरीब तबके को साधने की कोशिश होगी। राहुल ने जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा हटाने, अत्याचारों को उजागर करने और धर्मनिरपेक्षता को मिलाकर एक नई पहचान गढ़ी है। यह मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और दीपंकर भट्टाचार्य की CPI-ML की लाइन पर है।
यूपी का उदाहरण । राहुल गांधी की बिहार यात्रा का मकसद बहुजन समाज को आकर्षित करना और नीतीश कुमार की JDU व चिराग पासवान की LJP के वोट बैंक में सेंध लगाना है। अखिलेश यादव ने कुछ ऐसी ही रणनीति पिछले साल यूपी में बनाई थी, जिसमें वह सफल रहे। BJP के अत्यंत पिछड़ा वर्ग के जवाब में समाजवादी पार्टी ने अपनी पहचान PDA यानी पिछड़े, दलित व आदिवासी वर्ग के दल के रूप में बनाई। राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के अजेंडे ने अखिलेश के साथ मिलकर काम किया और पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को शानदार जीत मिली।
सपा की जीत । 2004 से लेकर अब तक ऐसे तमाम सबूत हैं, जो बताते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस हाशिये पर है, वहां राहुल गांधी की मौजूदगी से उनके सहयोगी दल या विचारधारा से मेल खाने वाले प्रतिद्वंद्वियों को ज्यादा फायदा होता है। यूपी में 2024 में महागठबंधन की जीत के पीछे राहुल की अहम भूमिका को अंदर-अंदर स्वीकार किया जाता है। चर्चा तो यह तक है कि 2007 में उन्होंने यूपी में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अभियान चलाया था, उससे BSP खलनायक बन गई और इसी से 2012 में सपा की जीत का आधार बना। राहुल फैक्टर ने पिछले साल महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान भी काम किया। वहीं, तमिलनाडु में कांग्रेस के हाशिये की पार्टी होने के बावजूद DMK राहुल की साख को महत्व देती है।
फिर होगी यात्रा। सासाराम में तेजस्वी यादव जीप चला रहे थे और राहुल बगल की सीट पर बैठे थे। यह तस्वीर इशारा करती है कि अपने राज्य में तेजस्वी लीड रोल में हैं। RJD के पास संगठन है, जबकि कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व और विचारधारा लेकर आती है, जिसका चेहरा राहुल हैं। बिहार चुनाव अभी कुछ महीनों दूर हैं। ऐसे में यह यात्रा आखिरी नहीं हो सकती। उम्मीद है कि चुनाव करीब आने पर राहुल फिर सड़क पर उतरेंगे।
You may also like
job news 2025: पुलिस कॉन्स्टेबल सहित कई पदों पर निकली हैं भर्ती, सैलेरी मिलेगी दबाकर
अरुणाचल प्रदेश में घायल पुलिसकर्मी की भारतीय सेना ने की बहादुराना मदद
लौंग: खुशबूदार मसाला वातनाशक और औषधीय गुणों से भरपूर
जेजीयू ने 4 महाद्वीपों के 10 देशों के अग्रणी वैश्विक संस्थानों के साथ 15 नए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए
Bank Job: लोकल बैंक ऑफिसर पद की भर्ती के लिए स्नातक पास कर सकता है आवेदन