पटना ( प्रियरंजन भारती ): बिहार विधानसभा चुनाव इस बार सीधे मुकाबले का रूप ले चुका है। नीतीश कुमार को एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा पहले ही घोषित किया जा चुका है। यह समर्थन केवल औपचारिक नहीं है। नीतीश के साथ 15-17% वोट जुड़ा हुआ है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं, ओबीसी, इबीसी और वंचित तबके के मतदाता शामिल हैं। मोदी फैक्टर चुनाव से पहले एनडीए कि घटक दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर समन्वय एक बड़ी चुनौती है, लेकिन भरोसा है कि यह मसला समय रहते हल कर लिया जाएगा। इससे एनडीए का पलड़ा और भारी हो जाएगा। वहीं, पहलगाम हमले के बाद पीएम मोदी ने बिहार की धरती से ही पाकिस्तान को सीधी चेतावनी दी थी और फिर उस पर कार्रवाई भी करके भी दिखाया। तेजस्वी पर सवाल एनडीए के सामने महागठबंधन है। इसमें कांग्रेस भी शामिल है, लेकिन वह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानने से हिचक रही है। वहीं लालू की हमेशा कोशिश रही है कि कांग्रेस को सिर्फ सहयोगी की भूमिका तक सीमित रखा जाए। तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनते देखना लालू की बड़ी ख्वाहिश है और वह इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। अब तक उन्होंने कांग्रेस को किनारे रखकर वाम दलों को ज्यादा अहमियत दी थी। लेकिन इस बार वह संतुलित रुख में दिख रहे हैं। सीट बंटवारे का मसला महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है सभी सहयोगी दलों को संतुलित तरीके से सीटें देना। इसमें वाम दल, कांग्रेस, मुकेश सहनी और पशुपति पारस की पार्टियां शामिल हैं। अगर संतुलन नहीं बना, तो अंदरूनी खींचतान से गठबंधन कमजोर पड़ सकता है। तेज प्रताप का असर आरजेडी के सामने तेज प्रताप यादव की वजह से भी संकट खड़ा हो गया। वेशक उन्हें परिवार और पार्टी से बाहर निकाल कर लालू ने परंपरागत वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है, पर इस पारिवारिक खींचतान का असर चुनावी रणनीति पर पड़ने से इनकार नहीं कर सकते। ओवैसी का प्रभावदूसरे दलों की बात करें, तो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम भी मुस्लिम वोटों पर नजर गड़ाए बैठी है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने सीमावर्ती इलाकों, जैसे किशनगंज और कटिहार में पांच सीटें जीतकर अच्छी शुरुआत की थी। भले ही बाद में उसके 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए, लेकिन इस बार एआइएमआइएम फिर से मजबूती से मैदान में है और बड़ी बात यह कि इस बार उसका ज्यादा प्रभावी असर भी नजर आ सकता है। पीके की कोशिश प्रशांत किशोर की जनसुराज ने पिछले दिनों विधानसभा की चार सीटों पर हुए उपचुनाव में उम्मीदवार खड़े किए थे। उसी का फैक्टर रहा कि आरजेडी के हाथ से उसकी परंपरागत सीट निकल गई। लालू के मुस्लिम यादव समीकरण को प्रशांत ध्वस्त करना चाहते हैं, लेकिन उनके सामने खुद की तमाम चुनौतियां है। बिहार में फिलहाल मुकाबला दोतरफा ही नजर आ रहा है। अभी सब कुछ रिहर्सल स्टेज में है। ऐसे में असली घमासान तब शुरू होगा जब सभी खिलाड़ी मैदान में उतरेंगे।
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