पटना/नई दिल्ली: बिहार में चुनाव से कुछ महीने पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के निर्देश को लेकर चुनाव आयोग सवालों के घेरे में है, जिस पर कई राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए हैं। अब इस निर्णय की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, क्योंकि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का कहना है कि इससे राज्य में लाखों हाशिए पर पड़े लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है।
वोटर लिस्ट का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
ADR ने कोर्ट में कहा है कि 'एसआईआर की दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं, उचित प्रक्रिया की कमी और बिहार में मतदाता सूची के उक्त विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रूप से कम समय सीमा इस अभ्यास को लाखों वास्तविक मतदाताओं के नामों को मतदाता सूची से हटाने के लिए बाध्य करती है, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाते हैं।'
ADR ने फैसले के खिलाफ दायर की याचिका
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस फैसले को चुनौती दी है। एक अखबार के अनुसार एडीआर का कहना है कि इससे लाखों लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का फैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। एडीआर का कहना है कि एसआईआर की प्रक्रिया में कई खामियां हैं।
ऐसे में कई लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे- ADR
एडीआर ने अपनी याचिका में नागरिकता दस्तावेज की आवश्यकता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इससे मुसलमानों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और प्रवासी श्रमिकों सहित हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन समुदायों के पास अक्सर आवश्यक दस्तावेज नहीं होते हैं। एडीआर का कहना है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। एडीआर के अनुसार, एसआईआर प्रक्रिया के तहत घोषणापत्र की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है।
3 करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट से हो सकते हैं बाहर?
एडीआर का कहना है कि बिहार में गरीबी और पलायन की दर बहुत अधिक है। कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज नहीं हैं। अनुमान के अनुसार, 3 करोड़ से अधिक मतदाता एसआईआर आदेश में उल्लिखित कठोर आवश्यकताओं के कारण मतदान से बाहर हो सकते हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि गांवों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में जल्द सुनवाई करने की मांग की है।
वोटर लिस्ट का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
ADR ने कोर्ट में कहा है कि 'एसआईआर की दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं, उचित प्रक्रिया की कमी और बिहार में मतदाता सूची के उक्त विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रूप से कम समय सीमा इस अभ्यास को लाखों वास्तविक मतदाताओं के नामों को मतदाता सूची से हटाने के लिए बाध्य करती है, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाते हैं।'
ADR ने फैसले के खिलाफ दायर की याचिका
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस फैसले को चुनौती दी है। एक अखबार के अनुसार एडीआर का कहना है कि इससे लाखों लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का फैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। एडीआर का कहना है कि एसआईआर की प्रक्रिया में कई खामियां हैं।
ऐसे में कई लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे- ADR
एडीआर ने अपनी याचिका में नागरिकता दस्तावेज की आवश्यकता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इससे मुसलमानों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और प्रवासी श्रमिकों सहित हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन समुदायों के पास अक्सर आवश्यक दस्तावेज नहीं होते हैं। एडीआर का कहना है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। एडीआर के अनुसार, एसआईआर प्रक्रिया के तहत घोषणापत्र की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है।
3 करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट से हो सकते हैं बाहर?
एडीआर का कहना है कि बिहार में गरीबी और पलायन की दर बहुत अधिक है। कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज नहीं हैं। अनुमान के अनुसार, 3 करोड़ से अधिक मतदाता एसआईआर आदेश में उल्लिखित कठोर आवश्यकताओं के कारण मतदान से बाहर हो सकते हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि गांवों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में जल्द सुनवाई करने की मांग की है।
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