अमितेश सिंह, गाजीपुर: दक्षिण अफ्रीका के राजदूत प्रोफेसर अनिल सूकलाल ने अपने पैतृक गांव ककरही सैदपुर (गाजीपुर) का दौरा किया। दो दिवसीय यात्रा के दौरान वे भावुक क्षणों से गुजरे और जड़ों से जुड़ाव को गहराई से महसूस किया। उनके पूर्वज गिरमिटिया मजदूर के तौर पर चले गए थे।
यात्रा के पहले दिन प्रोफेसर सुकलाल पवहारी बाबा आश्रम पहुंचे। यहां उन्होंने पारंपरिक पूजा-अर्चना की, प्रसाद ग्रहण किया और स्थानीय लोगों से स्वामी विवेकानंद से जुड़े इस आध्यात्मिक केंद्र की चर्चा की। उन्होंने अपनी भावनाओं को विजिटर डायरी में दर्ज किया। इसके बाद वे गंगा घाट गए और मां गंगा का दर्शन किया।
दूसरे दिन वे पैतृक गांव ककरही सैदपुर पहुंचे। सबसे पहले डीह बाबा का दर्शन-पूजन किया और गांव की मिट्टी स्मृति के रूप में साथ ले गए। इसके बाद स्कंद गुप्त काल के भीतरी सैदपुर स्थित विजय स्तंभ (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित) का भ्रमण किया। उनकी पत्नी पूरी यात्रा में साथ रहीं।
द्विभाषी टूरिस्ट गाइड के रूप में इस यात्रा में शामिल थिएटर एक्टिविस्ट नीलकमल डोगरा ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बताया कि प्रोफेसर सुकलाल के पूर्वज चार-पांच पीढ़ी पहले गिरमिटिया मजदूर के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए थे। प्रोफेसर सूकलाल ने अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने स्कंद गुप्त काल पर शोध कर पीएचडी हासिल की। गांव आना उनके लिए भावनात्मक यात्रा थी।
सोशल एक्टिविस्ट उमेश श्रीवास्तव ने राजदूत के स्थानीय भ्रमण व्यवस्थाएं संभालीं। राजदूत को किसी तरह की असुविधा न हो इसके लिए उच्च स्तर की सुविधाएं सुनिश्चित की गईं। नीलकमल डोगरा को पहले सभी स्थलों का भ्रमण कराया गया ताकि वे अंग्रेजी में जगहों का प्रभावी विवरण राजदूत को दे सकें।
प्रोफेसर सूकलाल गंगाजल और गांव की मिट्टी साथ ले गए। उनकी इस यात्रा में उनकी पत्नी भी शामिल थी। इसके साथ ही उनके साथ आई एक टीम उनके पूरे स्थानीय भ्रमण के पर डॉक्यूमेंट्री शूट करके भी ले गई, जिसे बाद में एडिट कर जारी किया जाएगा।
यात्रा के पहले दिन प्रोफेसर सुकलाल पवहारी बाबा आश्रम पहुंचे। यहां उन्होंने पारंपरिक पूजा-अर्चना की, प्रसाद ग्रहण किया और स्थानीय लोगों से स्वामी विवेकानंद से जुड़े इस आध्यात्मिक केंद्र की चर्चा की। उन्होंने अपनी भावनाओं को विजिटर डायरी में दर्ज किया। इसके बाद वे गंगा घाट गए और मां गंगा का दर्शन किया।
दूसरे दिन वे पैतृक गांव ककरही सैदपुर पहुंचे। सबसे पहले डीह बाबा का दर्शन-पूजन किया और गांव की मिट्टी स्मृति के रूप में साथ ले गए। इसके बाद स्कंद गुप्त काल के भीतरी सैदपुर स्थित विजय स्तंभ (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित) का भ्रमण किया। उनकी पत्नी पूरी यात्रा में साथ रहीं।
द्विभाषी टूरिस्ट गाइड के रूप में इस यात्रा में शामिल थिएटर एक्टिविस्ट नीलकमल डोगरा ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बताया कि प्रोफेसर सुकलाल के पूर्वज चार-पांच पीढ़ी पहले गिरमिटिया मजदूर के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए थे। प्रोफेसर सूकलाल ने अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने स्कंद गुप्त काल पर शोध कर पीएचडी हासिल की। गांव आना उनके लिए भावनात्मक यात्रा थी।
सोशल एक्टिविस्ट उमेश श्रीवास्तव ने राजदूत के स्थानीय भ्रमण व्यवस्थाएं संभालीं। राजदूत को किसी तरह की असुविधा न हो इसके लिए उच्च स्तर की सुविधाएं सुनिश्चित की गईं। नीलकमल डोगरा को पहले सभी स्थलों का भ्रमण कराया गया ताकि वे अंग्रेजी में जगहों का प्रभावी विवरण राजदूत को दे सकें।
प्रोफेसर सूकलाल गंगाजल और गांव की मिट्टी साथ ले गए। उनकी इस यात्रा में उनकी पत्नी भी शामिल थी। इसके साथ ही उनके साथ आई एक टीम उनके पूरे स्थानीय भ्रमण के पर डॉक्यूमेंट्री शूट करके भी ले गई, जिसे बाद में एडिट कर जारी किया जाएगा।
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