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पहली बार हुआ कमाल, कर्नाटक में भालू को लगाई गई नकली टांग..पूरी कहानी सुन खुश हो उठेंगे आप

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16 साल का वसीकरण..जिसमें हर मुश्किल से लड़ते हुए जिंदगी को जीने की ललक थी। कर्नाटक के बेल्लारी जिले का जंगल ही उसका घर था। लेकिन शिकारियों की बुरी नजर उसे लग गई। बुरी तरह घायल हुआ..एक पैर काटना पड़ा। लेकिन वो फिर उठ खड़ा हो गया। अब इस भालू ने नया इतिहास रच दिया है। वो दुनिया का पहला ऐसा भालू बन गया है, जिसे नकली टांग लगाई गई है।



इससे पहले कभी किसी जंगली जानवर को कृत्रिम अंग नहीं लगाया गया है। यह विज्ञान का चमत्कार ही है कि वासी (प्यार का नाम) एक बार फिर से अपने चारों पैरों से चल सकता है। इस कमाल को करने वाले शख्स का नाम है डेरिक कम्पाना (Derrick Campana)। अमेरिका के प्रसिद्ध कृत्रिम अंग विशेषज्ञ, जिन्हें लोग 'विजार्ड ऑफ पॉज' भी कहते हैं।



शिकारियों के जाल में फंसा बात 2019 की है। शिकारियों ने भालू को पकड़ने के लिए बेल्लारी के जंगलों में जाल बिछाया हुआ था। वसीकरण उसमें फंस गया। नुकीले और धारदार लोहे के जाल में उसका पैर फंस गया। उसने निकलने की बहुत कोशिश की। किसी तरह वो जाल से बाहर तो आ गया, लेकिन बुरी तरह घायल हो गया। जब उसे बानेरघटा के पास रेस्क्यू सेंटर लाया गया तो उसकी हालत इतनी ज्यादा खराब थी कि उसका बचना मुश्किल लग रहा था। कई जगह हड्डी टूट चुकी थी। खून बहुत ज्यादा बह चुका था। हालांकि इस भालू ने मौत को मात दे दी और हिम्मत नहीं छोड़ी। विशेषज्ञों को इसका जिंदा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं लगा।

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महीनों इलाज चलना..फिर काटना पड़ा पैर वसीकरण हार मानने को तैयार नहीं था। महीनों उसका इलाज चला। इस दौरान जबरदस्त दर्द से गुजरा। डॉक्टर्स को आखिरकार उसका एक पैर काटना पड़ा। रेस्क्यू सेंटर में ही उसने 3 पैरों पर जिंदगी काटना सीखना शुरू कर दिया। उसे भी लगने लगा था कि अब जिंदगी 3 पैरों के सहारे ही कटेगी। लेकिन तभी डेरिक तक इस भालू की खबर पहुंच गई। उन्होंने Wildlife SOS, बानेरघटा बायोलॉजिकल पार्क और कर्नाटक वन विभाग के साथ मिलकर इस नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिया। वसीकरण को नकली टांग लगा दी गई।



भालू को पैर लगाना थी बड़ी चुनौती डेरिक कम्पाना कहते हैं कि वासी का केस बाकी जानवरों जैसा नहीं था। एक भालू के लिए कृत्रिम अंग तैयार करना बड़ी चुनौती थी। लेकिन अब उसे देखकर गर्व महसूस हो रहा है। Wildlife SOS के सीनियर वेटेनरी ऑफिसर डॉक्टर अरुण शाह के अनुसार हमें हमेशा यही चिंता थी कि 3 पैरों पर पूरा वजन पड़ने से उसके जोड़ और कमर पर काफी जोर पड़ेगा। कृत्रिम अंग एक मील का पत्थर साबित होगा। इस काम से वासी का भविष्य सुरक्षित हो गया है।

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