नई दिल्ली: अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने भारत और चीन को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि इन दोनों को रूसी तेल का आयात जारी रखने पर जल्द ही भारी आर्थिक दंड का सामना करना पड़ सकता है। ग्राहम ने यूक्रेन का समर्थन नहीं करने वाले देशों से आयात पर 500% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है। सीनेटर के अनुसार, अगर कोई देश रूस से उत्पाद खरीदता है और यूक्रेन की मदद नहीं करता है तो अमेरिका में उसके उत्पादों पर 500% टैरिफ लगेगा। उनका कहना है कि भारत और चीन रूस के तेल का 70% खरीदते हैं। ये रूस की युद्ध मशीन को चालू रखते हैं। इस विधेयक को व्यापक समर्थन मिला है। इसमें एक खास छूट का प्रावधान है जो राष्ट्रपति को कार्यान्वयन पर विवेकाधिकार देता है। सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल ने भी इसी तरह की बात कही है। उन्होंने रूस और उसके व्यापारिक भागीदारों के खिलाफ 'साहसिक आर्थिक आक्रमण' की अपील की है। उनका कहना है कि अगर रूस शांति वार्ता में प्रवेश करने से इनकार करता है या यूक्रेन के साथ किसी भी भविष्य के समझौते का उल्लंघन करता है तो भारत और चीन पर 500% टैरिफ लगाया जाना चाहिए।
दरअसल, यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। इसमें रूसी तेल की खरीद पर भी कुछ सीमाएं शामिल हैं (जैसे G7 मूल्य सीमा)। भारत और चीन दोनों ही अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रियायती दरों पर रूसी तेल खरीद रहे हैं। इसे कुछ अमेरिकी राजनेता रूसी अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के रूप में देखते हैं।
क्या अमेरिका में भारत और चीन से एकसाथ भिड़ने का दम है?बेशक, अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति है। लेकिन, इसकी ताकत भी असीमित नहीं है, खासकर जब बात दो बड़ी परमाणु शक्तियों और आर्थिक दिग्गजों (भारत और चीन) से एक साथ 'भिड़ने' की हो। अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करती है। चीन और भारत के लिए भी अमेरिका महत्वपूर्ण है। यह आपसी निर्भरता ही ऐसे चरम कदमों को रोक सकती है। इससे दोनों पक्षों को भारी नुकसान होगा। अमेरिका अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को एक ही समय में कई मोर्चों पर दांव पर नहीं लगाना चाहेगा। चीन के साथ पहले से ही प्रतिस्पर्धा है और भारत को अलग-थलग करना एक रणनीतिक गलती होगी।
अमेरिका के लिए आत्मघाती होगा कदम
भारत और चीन दोनों ही दुनिया के प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग हब हैं। उनके उत्पादों पर 500% टैरिफ का मतलब होगा कि अमेरिकी उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुओं के लिए अविश्वसनीय रूप से अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इससे अमेरिकी परिवारों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, महंगाई आसमान छू जाएगी और जीवन यापन की लागत असहनीय हो जाएगी।
कई अमेरिकी कंपनियों की सप्लाई चेन भारत और चीन में गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। ऐसे टैरिफ से उन्हें अपने उत्पादन की लागत में भारी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। इससे उनकी प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित होगी। कुछ को तो परिचालन बंद भी करना पड़ सकता है। अचानक इतने बड़े टैरिफ लगाने से ग्लोबल सप्लाई चेनें पूरी तरह से ध्वस्त हो सकती हैं। इससे दुनिया भर में उत्पादों की कमी और व्यवधान पैदा होंगे।
भारत और चीन निश्चित रूप से जवाबी कार्रवाई करेंगे। वे अमेरिकी उत्पादों पर भी भारी टैरिफ लगाएंगे। इससे अमेरिकी निर्यातकों को भारी नुकसान होगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दोहरा झटका लगेगा।
यह WTO के नियमों का गंभीर उल्लंघन होगा। इससे अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंच पर कानूनी चुनौतियों और व्यापक निंदा का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों को तोड़ने वाले के रूप में देखा जाएगा।
भभकी से ज्यादा कुछ नहीं
भारत अमेरिका का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार है। विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए। ऐसे कदम से भारत के साथ संबंध गंभीर रूप से खराब होंगे। उसे रूस या चीन की ओर धकेला जा सकता है, जो अमेरिका के दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के खिलाफ होगा। चीन के साथ तो संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं। लेकिन, इसे और बढ़ाना अमेरिका के लिए भी महंगा पड़ सकता है।
ऐसे में 500% टैरिफ की धमकी राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा अधिक है। इसे लागू किए जाने की संभावना बहुत कम है।
यह केवल एक भभकी है जिसका उद्देश्य भारत और चीन को रूसी तेल खरीद के मामले में दबाव में लाना हो सकता है। लेकिन, यह वास्तविक और व्यवहार्य नीति नहीं है।
दरअसल, यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। इसमें रूसी तेल की खरीद पर भी कुछ सीमाएं शामिल हैं (जैसे G7 मूल्य सीमा)। भारत और चीन दोनों ही अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रियायती दरों पर रूसी तेल खरीद रहे हैं। इसे कुछ अमेरिकी राजनेता रूसी अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के रूप में देखते हैं।
क्या अमेरिका में भारत और चीन से एकसाथ भिड़ने का दम है?बेशक, अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति है। लेकिन, इसकी ताकत भी असीमित नहीं है, खासकर जब बात दो बड़ी परमाणु शक्तियों और आर्थिक दिग्गजों (भारत और चीन) से एक साथ 'भिड़ने' की हो। अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करती है। चीन और भारत के लिए भी अमेरिका महत्वपूर्ण है। यह आपसी निर्भरता ही ऐसे चरम कदमों को रोक सकती है। इससे दोनों पक्षों को भारी नुकसान होगा। अमेरिका अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को एक ही समय में कई मोर्चों पर दांव पर नहीं लगाना चाहेगा। चीन के साथ पहले से ही प्रतिस्पर्धा है और भारत को अलग-थलग करना एक रणनीतिक गलती होगी।
अमेरिका के लिए आत्मघाती होगा कदम
भारत और चीन दोनों ही दुनिया के प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग हब हैं। उनके उत्पादों पर 500% टैरिफ का मतलब होगा कि अमेरिकी उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुओं के लिए अविश्वसनीय रूप से अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इससे अमेरिकी परिवारों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, महंगाई आसमान छू जाएगी और जीवन यापन की लागत असहनीय हो जाएगी।
कई अमेरिकी कंपनियों की सप्लाई चेन भारत और चीन में गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। ऐसे टैरिफ से उन्हें अपने उत्पादन की लागत में भारी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। इससे उनकी प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित होगी। कुछ को तो परिचालन बंद भी करना पड़ सकता है। अचानक इतने बड़े टैरिफ लगाने से ग्लोबल सप्लाई चेनें पूरी तरह से ध्वस्त हो सकती हैं। इससे दुनिया भर में उत्पादों की कमी और व्यवधान पैदा होंगे।
भारत और चीन निश्चित रूप से जवाबी कार्रवाई करेंगे। वे अमेरिकी उत्पादों पर भी भारी टैरिफ लगाएंगे। इससे अमेरिकी निर्यातकों को भारी नुकसान होगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दोहरा झटका लगेगा।
यह WTO के नियमों का गंभीर उल्लंघन होगा। इससे अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंच पर कानूनी चुनौतियों और व्यापक निंदा का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों को तोड़ने वाले के रूप में देखा जाएगा।
भभकी से ज्यादा कुछ नहीं
भारत अमेरिका का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार है। विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए। ऐसे कदम से भारत के साथ संबंध गंभीर रूप से खराब होंगे। उसे रूस या चीन की ओर धकेला जा सकता है, जो अमेरिका के दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के खिलाफ होगा। चीन के साथ तो संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं। लेकिन, इसे और बढ़ाना अमेरिका के लिए भी महंगा पड़ सकता है।
ऐसे में 500% टैरिफ की धमकी राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा अधिक है। इसे लागू किए जाने की संभावना बहुत कम है।
यह केवल एक भभकी है जिसका उद्देश्य भारत और चीन को रूसी तेल खरीद के मामले में दबाव में लाना हो सकता है। लेकिन, यह वास्तविक और व्यवहार्य नीति नहीं है।
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