बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही विपक्षी महागठबंधन ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक, गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे पर लगभग सहमति बन चुकी है और सरकार बनने की स्थिति में तीन उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की योजना पर भी मोहर लग चुकी है। खास बात यह है कि ये तीनों उपमुख्यमंत्री दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) से चुने जाएंगे। यह जानकारी बुधवार को राजद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दी।
गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरातेजस्वी यादव होंगे। यादव, जो दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और पिछड़े वर्ग से आते हैं, इस बार सीधे नीतीश कुमार को चुनौती देंगे। वहीं, एनडीए की मौजूदा सरकार में सम्राट चौधरी (ओबीसी) और विजय कुमार सिन्हा (भूमिहार) उपमुख्यमंत्री के पद संभाल रहे हैं।
सीटों का बंटवारा और राजनीतिक संतुलन का गणित
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी के अनुसार, महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की रूपरेखा लगभग तय कर ली गई है। इसके तहत आरजेडी 125 सीटों पर, कांग्रेस 50 से 55 सीटों पर और वाम दल करीब 25 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। शेष सीटें सहयोगी दलों—विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), लोक जनशक्ति पार्टी (पशुपति पारस गुट) और झारखंड मुक्ति मोर्चा—के बीच बांटी जाएंगी।
तिवारी ने कहा, “यह फॉर्मूला इस बात का स्पष्ट संकेत है कि तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के सर्वसम्मत मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे। यह उनकी रणनीतिक चाल है, जो आरजेडी की यादव-केंद्रित छवि को बदलते हुए दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक वर्ग को सत्ता में सीधे तौर पर भागीदारी दिलाने की दिशा में उठाया गया कदम है।”
कांग्रेस और सहयोगी दलों की प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता प्रवीन सिंह कुशवाहा ने कहा कि तीन उपमुख्यमंत्री का प्रस्ताव राहुल गांधी के सामाजिक न्याय और समावेशन के सिद्धांत से मेल खाता है। उनके अनुसार, “यह प्रतीकात्मक फैसला नहीं बल्कि सामाजिक न्याय को वास्तविक रूप देने का प्रयास है।”
वहीं वीआईपी प्रवक्ता देव ज्योति ने बताया कि यह निर्णय तेजस्वी यादव की दूरदर्शिता को दर्शाता है। उन्होंने दावा किया कि “गुरुवार शाम तक तेजस्वी जी को महागठबंधन का औपचारिक मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया जाएगा और उपमुख्यमंत्रियों में से एक हमारी पार्टी के नेता मुकेश साहनी होंगे।”
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव से पहले उपमुख्यमंत्री जैसे पदों की घोषणा करना भारतीय राजनीति में कम ही देखा गया है। आरजेडी पिछले दो दशकों में अकेले दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी है, और 2020 के चुनाव में भी गठबंधन महज कुछ सीटों से पीछे रह गया था। उस समय छोटे समुदायों ने यादव वर्चस्व के विरोध में मौन एकजुटता दिखाई थी।
विरोधी दलों का पलटवार
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रवक्ता राम पुकड़ शर्मा ने महागठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा, “ये लोग चुनाव से पहले हवाई सपने दिखाने में माहिर हैं। जिनके पास बहुमत का भरोसा नहीं, वे पहले से उपमुख्यमंत्रियों के नाम तय कर रहे हैं। बेहतर होगा कि वे पूरा मंत्रिमंडल ही घोषित कर दें।”
जन सुराज पार्टी के अनिल कुमार सिंह ने इस योजना को “चुनावी प्रचार का खोखला शोर” बताया। उन्होंने कहा, “महागठबंधन के लिए 123 सीटों का आंकड़ा पार करना आसान नहीं है। यह योजना इसलिए लाई गई है ताकि वीआईपी के मुकेश साहनी जैसे नेता पाला न बदलें। सत्ता के इतने हिस्से पहले से बांटने की कोशिश नौकरशाही में भ्रम और अंतःकलह को जन्म दे सकती है, जो तेजस्वी के नेतृत्व को भी कमजोर कर सकती है।”
बिहार में उपमुख्यमंत्रियों का इतिहास और राजनीति
बिहार की राजनीतिक परंपरा में अब तक 10 उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। राज्य के पहले उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा ने श्रीकृष्ण सिन्हा के साथ 11 वर्षों तक साझा शासन मॉडल प्रस्तुत किया था। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर ने 329 दिन उपमुख्यमंत्री पद संभालने के बाद मुख्यमंत्री का पद प्राप्त किया।
कुछ छोटे कार्यकाल भी इतिहास में दर्ज हैं — जैसे शोषित समाज दल के जगदेव प्रसाद मात्र चार दिन के लिए और कांग्रेस के राम जयपाल सिंह यादव करीब 220 दिनों तक इस पद पर रहे। वहीं, बीजेपी के सुशील कुमार मोदी ने 10 साल 316 दिन तक उपमुख्यमंत्री रहते हुए लंबा कार्यकाल पूरा किया।
तेजस्वी यादव ने भी 2015 से 2025 के बीच दो कार्यकालों में तीन वर्ष से अधिक समय तक इस पद को संभाला। एनडीए सरकार के दौरान तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी ने संयुक्त रूप से 632 दिनों तक उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी निभाई। मौजूदा समय में सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा 28 जनवरी 2024 से इस पद पर कार्यरत हैं।
तीन उपमुख्यमंत्रियों का फॉर्मूला – क्या बदलेगा समीकरण?
पटना के राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार मानते हैं कि उपमुख्यमंत्री का पद हमेशा से राजनीतिक संतुलन का उपकरण रहा है। उन्होंने कहा, “तेजस्वी यादव का तीन उपमुख्यमंत्रियों का फार्मूला एक चतुर राजनीतिक कदम है। यह न केवल वंशवाद के आरोपों को कमजोर करता है, बल्कि यादव-केंद्रित राजनीति से दूर हटकर दलित, पिछड़े और मुस्लिम समाज को सत्ता में हिस्सेदारी का आश्वासन देता है।”
बिहार विधानसभा की 243 सीटों में बहुमत के लिए 123 सीटों की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, महागठबंधन की यह रणनीति सामाजिक समीकरणों को साधते हुए सत्ता की ओर बढ़ने का एक निर्णायक प्रयास मानी जा रही है।
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