नई दिल्ली, 1 जुलाई . भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस पार्टी पर बड़ा हमला करते हुए दावा किया है कि पार्टी को कई दशकों तक अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और सोवियत संघ की केजीबी से फंडिंग मिलती रही. दुबे ने इस मामले की न्यायिक जांच आयोग से जांच कराने की मांग की और इसे भारतीय लोकतंत्र और संप्रभुता पर एक गंभीर हमला करार दिया.
समाचार एजेंसी से खास बातचीत में निशिकांत दुबे ने कहा 1947 से लेकर 2014 के बीच, कांग्रेस ने अपने शासनकाल में विदेशी ताकतों के इशारों पर काम किया. केजीबी और सीआईए जैसे विदेशी खुफिया संगठनों से पार्टी के शीर्ष नेता फंडिंग लेते रहे और उन्हीं के अनुसार देश की नीतियां बनती रहीं. केवल अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार (1998-2004) को छोड़ दें तो यह देश हमेशा विदेशी फंडिंग और एजेंडे पर चला. अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए दुबे ने बताया कि उन्होंने हाल ही में दो ‘एक्स’ पोस्ट किए थे जिनमें कांग्रेस और उसके नेताओं की कथित विदेशी फंडिंग से जुड़ी जानकारी साझा की गई.
अपने एक्स पोस्ट में दुबे ने दावा किया कि ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को पत्र लिखकर अमेरिका से संबंध सुधारने का आग्रह किया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि निक्सन और उनके सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के बीच एक फोन वार्तालाप में करीब 300 करोड़ रुपए की सहायता की चर्चा हुई थी.
उन्होंने आगे कहा कि 10 मई 1979 को राज्यसभा में हुई बहस में तत्कालीन गृह मंत्री चंपत पटेल ने अमेरिकी राजदूत डेनियल मोयनिहान की किताब का हवाला देते हुए स्वीकार किया था कि अमेरिका ने कांग्रेस को दो बार चंदा दिया. एक बार केरल में कम्युनिस्ट सरकार को हटाने के लिए और दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए. दुबे ने कहा कि यह उस समय के फेरा (अब पीएमएलए) कानून का स्पष्ट उल्लंघन था.
इस पूरे नेटवर्क का एक महत्वपूर्ण कड़ी रॉ अधिकारी रविंद्र सिंह को बताया गया, जो दुबे के अनुसार सीआईए के भी एजेंट थे. दुबे ने आरोप लगाया कि 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई, तो उसी वर्ष रविंद्र सिंह को अमेरिका भगा दिया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि 2005 से 2014 तक भारत सरकार ने उसे वापस लाने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया. उन्होंने दावा किया कि रविंद्र सिंह की सीआईए और अमेरिकी राजदूत मोयनिहान से बातचीत के सबूत मौजूद हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि कांग्रेस को फंडिंग इसी चैनल से मिलती रही.
भाजपा सांसद ने कहा कि उन्होंने जब नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में बनी, तब रविंद्र सिंह की अमेरिका में मौजूदगी आखिरी बार दर्ज हुई. लेकिन 2015-16 में उसकी मौत हो गई, जिसे मैं एक साजिश मानता हूं. उन्हें डर था कि अगर मोदी सरकार ने रविंद्र सिंह को भारत बुलाया, तो पूरी सच्चाई उजागर हो जाएगी.
दुबे ने यह भी दावा किया कि सोवियत संघ ने भारत में 16 हजार से ज्यादा खबरें अपने एजेंडे के अनुसार प्रकाशित करवाईं, मीडिया संस्थानों को खरीदा गया और पत्रकारों, नौकरशाहों व व्यापारिक संगठनों को भी फंडिंग दी गई. यहां तक कि महिला प्रेस क्लब का निर्माण भी सोवियत एजेंडे का हिस्सा था. यहां के नौकरशाहों के बच्चे विदेशों में पढ़ते थे और खुद अधिकारी सरकारी खर्चे पर घूमने जाते थे.
अपनी बातचीत में दुबे ने एक और उदाहरण दिया कि सुभद्रा जोशी, जो कांग्रेस की नेता थीं, उन्हें जर्मन फंडिंग के तहत 5 लाख रुपए दिए गए थे. जब वे चुनाव हार गईं तो उन्हें इंडो जर्मन फोरम का अध्यक्ष बना दिया गया.
वहीं, कांग्रेस की ओर से भाजपा पर लगाए जा रहे आरोपों के जवाब में दुबे ने कहा कि हमें सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. सबको पता है कि आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक तीसरे स्थान पर होगा. लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस ने कैसे देश को विदेशियों के हाथों गिरवी रखा और उसके बदले में फंडिंग ली?
भाजपा सांसद ने आगे कहा कि अब वक्त आ गया है कि एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग गठित किया जाए जो 1947 से लेकर 2014 तक कांग्रेस की कथित विदेशी फंडिंग की पूरी जांच करे. उन्होंने कहा कि इस आयोग को यह भी जांच करनी चाहिए कि कौन-कौन नेता, अधिकारी और सांसद इसमें शामिल थे, और इस विदेशी पैसे के दम पर किस प्रकार भारत की नीति, मीडिया, और शासन प्रणाली को प्रभावित किया गया.
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पीएसके/केआर
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