ब्राह्मण हत्या: हिंदू धर्म में शराब पीना राक्षसी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। इसे एक ऐसा पेय माना जाता है जो नकारात्मक भावनाओं को जन्म देता है और व्यक्ति को आध्यात्मिकता से दूर कर देता है। ब्राह्मणों के लिए शराब पीना सबसे बड़ा पाप माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगता है। इस विषय पर शुक्राचार्य और कच की एक प्रसिद्ध कथा है, जो महाभारत और मत्स्य पुराण जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
मदिरा सेवन से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन काल में देवताओं और राक्षसों के बीच त्रिलोकी पर विजय पाने के लिए युद्ध हुआ। युद्ध में मारे गए राक्षसों को उनके गुरु शुक्राचार्य ने मृत संजीवनी विद्या से पुनर्जीवित किया, जबकि देव गुरु बृहस्पति के पास यह विद्या नहीं थी। इस स्थिति में, देवताओं ने गुरु बृहस्पति से उनके पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास भेजने का अनुरोध किया, ताकि वह संजीवनी विद्या सीख सके। कच ने एक हजार वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शुक्राचार्य और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा की।
संजीवनी विद्या
जब राक्षसों को कच के संजीवनी विद्या सीखने की जानकारी मिली, तो उन्होंने उसे दो बार मार डाला। लेकिन देवयानी की प्रार्थना पर शुक्राचार्य ने उसे पुनर्जीवित कर दिया। अंततः, राक्षसों ने तीसरी बार कच को मारकर उसके शरीर को आग में जला दिया और उसकी राख को मदिरा में मिलाकर शुक्राचार्य को पिलाया। जब कच फिर से जीवित हुआ, तो शुक्राचार्य ने उसे पेट में ही संजीवनी विद्या सिखाई। कच ने शुक्राचार्य को पुनर्जीवित करने के लिए अपने पेट को फाड़कर बाहर आ गया।
ब्राह्मणों को दिया श्राप
पुनर्जीवित होने के बाद शुक्राचार्य ने कच की हत्या के लिए राक्षसों पर क्रोध व्यक्त किया। उन्होंने शराब को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और संकल्प लिया कि अब से जो भी ब्राह्मण शराब का सेवन करेगा, वह ब्रह्महत्या का दोषी होगा। इस प्रकार, शराब का सेवन विशेष रूप से ब्राह्मणों के लिए वर्जित हो गया।
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