
क्रिकेट फैंस में वीआरवी सिंह के नाम से पहचान बनाने वाले इस बॉलर का जन्म 17 सितंबर को हुआ था। वे दाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे। जब वीआरवी का उदय हो रहा था, तब भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की गति को लेकर आलोचना होती थी और श्रीनाथ के बाद टीम इंडिया को नैसर्गिक पेसर की सख्त दरकार थी।
ऐसे में पंजाब के लंबे-चौड़े बॉलर वीआरवी का आगमन ठंडी हवा के झोंके सरीखा था। भारतीय टीम में आगमन से पहले ही उन्ही गति से उन्हें प्रसिद्ध कर दिया था। वह 90 मील प्रति घंटा और कई बार उससे भी तेज गेंद गति से बॉलिंग करते थे। इस स्पीड का आदी भारतीय घरेलू क्रिकेट भी नहीं था। यही वजह से अपने पहले ही डोमेस्टिक सीजन में वीआरवी ने गति से कहर ढाया था। उन्होंने उस सीजन में मात्र सात रणजी मैच खेले, लेकिन 20.67 की औसत से 34 विकेट हासिल किए।
2005 में उन्हें चैलेंजर्स ट्रॉफी खेलने का मौका मिला, जो एक डोमेस्टिक प्रीमियर टूर्नामेंट था। तब सही मायनों में उनकी गति ने दर्शकों को उन तक पहुंचाया। अखबारों की हैडलाइन में रफ्तार का नया सौदागर उभर रहा था और भारतीय फैंस शोएब अख्तर, ब्रेट ली, शेन बॉन्ड, शॉन टेट की तरह अपने पास भी एक देसी हीरो होने की महत्वाकांक्षा से सराबोर थे।
हालांकि, रफ्तार तेज गेंदबाजी का कला का सिर्फ एक पहलू है। लाइन-लेंथ, लय, नियंत्रण के साथ फिटनेस जैसी चीजें एक फास्ट बॉलर के साथ-साथ अभिन्न अंग की तरह चलती हैं। वीआरवी के पास शुरुआती दौर में रॉ-पेस यानी विशुद्ध रफ्तार थी। समय के साथ लाइन-लेंथ बेहतर हो सकती थी। यह फिटनेस थी, जिसने उनके करियर को सीमित करने में निर्णायक भूमिका निभाई।
जैसे ही भारतीय टीम में दरवाजे उनके लिए खुल रहे थे, वह चोटिल हो गए और रिहैब से गुजरना पड़ा। हालांकि चयनकर्ताओं की नजर में वह आ चुके थे, इसलिए जब इंग्लैंड के खिलाफ सात मैचों की वनडे सीरीज में उन्हें चुना गया तो भारतीय फैंस ने इस बॉलर को टीवी पर करीब से देखा। वीआरवी जब भी बॉलिंग करने आते तो विकेट से ज्यादा स्पीड गन पर फैंस की निगाहें थी।
वीआरवी निश्चित तौर पर भविष्य के नैसर्गिक बॉलर थे, लेकिन उनके करियर ने उस तरह से शेप नहीं लिया, जिसकी उम्मीद थी। वह कई बार नियंत्रण को ढूंढने में जद्दोजहद करते तो कई बार रफ्तार पर थोड़ी लगाम लगाकर लाइन को पकड़ने के लिए संघर्ष करते। इन सब चीजों के साथ फिटनेस एक अहम चुनौती बनी हुई थी।
इन सब चीजों के बीच उनका चयन भारतीय टीम के कैरेबियाई दौरे पर हुआ, जहां उनको वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैच में पदार्पण करने का मौका मिला। तब इयान बिशप वीआरवी को देख काफी खुश थे।
वीआरवी निश्चित तौर पर भविष्य के नैसर्गिक बॉलर थे, लेकिन उनके करियर ने उस तरह से शेप नहीं लिया, जिसकी उम्मीद थी। वह कई बार नियंत्रण को ढूंढने में जद्दोजहद करते तो कई बार रफ्तार पर थोड़ी लगाम लगाकर लाइन को पकड़ने के लिए संघर्ष करते। इन सब चीजों के साथ फिटनेस एक अहम चुनौती बनी हुई थी।
Also Read: LIVE Cricket Scoreभारतीय क्रिकेट में बेहतर बुनियादी सुविधाएं, वर्ल्ड क्लास कोचिंग और वर्कलोड मैनेजमेंट जैसी चीजों पर फोकस किया गया। इसलिए वीआरवी भारत के अंतिम विशुद्ध पेसर साबित नहीं हुए और टीम इंडिया ने साबित कर दिया कि एक एशियाई टीम भी आला दर्जे के तेज गेंदबाज पैदा कर सकती है।
Article Source: IANSYou may also like
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