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धर्मस्थल प्रकरण : अफवाह, षड्यंत्र और सनातन मंदिर संस्कृति पर हमला

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– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले के धर्मस्थल मंदिर से जुड़ा विवाद बीते कुछ महीनों से राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बना हुआ है। यह वही स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और सेवा, भक्ति एवं धार्मिक अनुशासन की परंपरा में सहभागी बनते हैं। बीते दिनों अचानक यह खबर तेजी से फैली कि मंदिर प्रांगण में वर्षों से लाशें दफनाई और जलायी जाती रही हैं। जैसे ही यह आरोप सामने आया, समाज में गहरा आक्रोश फैला और सनातन मंदिर संस्कृति की पवित्रता पर गंभीर प्रश्नचिह्न उठने लगे। लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी और परतें खुलीं, यह स्पष्ट होने लगा है कि यह केवल अफवाह नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित दुष्प्रचार और षड्यंत्र का हिस्सा था।

आरोपों की शुरुआत और व्हिसलब्लोअर का नाटक

दरअसल, इस विवाद की नींव एक पूर्व स्वच्छता कर्मचारी चेन्ना (सी.एन.चिन्नैया) ने रखी। उसने दावा किया कि 1995 से 2014 तक मंदिर प्रशासन के दबाव में उसे शव दफनाने और जलाने के लिए विवश किया गया। चिन्नैया का आरोप था कि दफनाए गए शवों में बड़ी संख्या महिलाओं और नाबालिग लड़कियों की थी। उनका दावा है कि कई शवों पर यौन उत्पीड़न के निशान भी पाए गए। इस संबंध में उन्होंने मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी दर्ज कराया थे। धर्मस्थल केस में लगातार हो रहे नए खुलासों ने पूरे कर्नाटक को हिला दिया। चेन्ना ने सुरक्षा की शर्त पर गवाही देने की पेशकश की और मीडिया में नकाबपोश गवाह के रूप में छा गया। लेकिन एसआईटी जांच में उसके बयान झूठे और विरोधाभासी निकले।

सुजाता भट के पलटते बयान

विवाद को और हवा दी एक बुज़ुर्ग महिला सुजाता भट ने। पहले उन्होंने दावा किया कि उनकी बेटी अनन्या भट लापता है और संभव है कि वह दफनाई गई लाशों में से एक हो। फिर अचानक उन्होंने कहा कि उनकी कोई बेटी थी ही नहीं। बाद में फिर पलटते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें एक यूट्यूबर एम.डी. समीर ने झूठ बोलने के लिए मजबूर किया। उनके इन यू-टर्न्स ने मामले को उलझा जरूर दिया, लेकिन साथ ही यह भी साफ़ किया कि पीछे कहीं न कहीं कुछ लोगों की सनसनीखेज़ रणनीति काम कर रही है। अब एसआईटी ने समीर को समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया है।

एसआईटी की पड़ताल और हकीकत

डीजीपी प्रणब मोहंती की अगुवाई में गठित एसआईटी ने मंदिर परिसर की खुदाई कराई। कुछ हड्डियाँ तो मिलीं, किंतु वे मुख्यतः पुरुष शरीरों से संबंधित थीं, जबकि आरोप युवतियों पर केंद्रित थे। इससे आरोपों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा हुआ। वैज्ञानिक जांच और गवाहियों के क्रॉस-चेक से एसआईटी ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरोप वास्तविकता से मेल नहीं खाते। मंदिर प्रशासन या धर्माधिकारी परिवार के विरुद्ध भी कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया।

कांग्रेस सरकार ने किया मंदिर संस्‍कृति को बदनाम करने का प्रयास

यहां अब भाजपा ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया सरकार मंदिर संस्कृति को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रही है। कर्नाटक में धर्मस्थल को लेकर जारी विवाद पर भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस सरकार पर कड़ा प्रहार किया। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने एक नकाबपोश व्यक्ति को पूरे तंत्र को एक महीने से भी अधिक समय तक बंधक बनाए रखने दिया, जो बेहद चिंताजनक है। इस साज़िश का उद्देश्य धर्मस्थल मंदिर, जो सनातन परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक है, को बदनाम करना था। कांग्रेस सरकार ने बिना सबूत मनगढ़ंत दावे गढ़े और एसआईटी गठित कर 16 स्थानों पर खुदाई करवाई, यहां झूठे तौर पर “कब्रिस्तान” बताने की कोशिश की गई।

असली मास्टरमाइंड अभी तक सामने नहीं आया

उन्होंने कहा कि कई हफ्तों की खुदाई के बाद केवल कुछ कंकाल और हड्डियाँ मिलीं, जो सामान्य परिस्थितियों में हुई मौतों से जुड़ी थीं, लेकिन इनका मंदिर से कोई संबंध नहीं था।सुजाता भट्ट नामक महिला से उसकी “अनन्या भट्ट” नाम की काल्पनिक बेटी की गुमशुदगी की झूठी शिकायत दर्ज करवाई गई। बाद में उसने स्वीकार किया कि उसकी ऐसी कोई बेटी थी ही नहीं, और एआई की मदद से बनाई गई फर्जी तस्वीरें साक्ष्य के तौर पर पेश की गई थीं। मालवीय ने कहा कि नकाबपोश व्यक्ति और साजिश में शामिल कुछ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन असली मास्टरमाइंड अभी तक सामने नहीं आया। उनके अनुसार, यह पूरा षड्यंत्र कांग्रेस सरकार दबाने की कोशिश कर रही है।

आठ सौ साल से भी ज्यादा सालों से धर्मस्थल आस्था और सेवा के प्रतीक के रूप में

उन्होंने कहा, ‘नकाबपोश व्यक्ति को किसने ये करने को कहा, उसे किसने पैसे दिए, धर्मस्थल को बदनाम करने से किसे फायदा हुआ, ये वो सवाल हैं, जिन्हें कांग्रेस सरकार दबाने के लिए बेताब है। 800 साल से भी ज्यादा सालों से धर्मस्थल आस्था और सेवा के प्रतीक के रूप में खड़ा रहा है। आज इसे इस्लामी प्रभाव और तटीय कर्नाटक के माफिया नेटवर्क का विरोध करने वाले हिंदू आधार होने की सजा मिल रही है। यह लगातार जारी हमला कांग्रेस के टूलकिट ऑपरेशन का नतीजा है। अनुमान है कि इसका मास्टरमाइंड कोई और नहीं, बल्कि राहुल गांधी का एक करीबी विश्वासपात्र है।’

उन्होंने कहा, ‘एक पूर्व उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी के रूप में दक्षिण कन्नड़ के सामाजिक ताने-बाने की अपनी जानकारी के आधार पर, वह हिंदू संस्थाओं पर एक सुनियोजित हमला कर रहा है. इसकी योजना स्पष्ट है, फर्जी मुद्दे गढ़ना, प्रशासनिक खामियों का फायदा उठाना, कट्टरपंथी तत्वों को तैनात करना और अल जजीरा जैसे मित्रवत माध्यमों की मदद से दुष्प्रचार का अंतरराष्ट्रीयकरण करना।’ अमित मालवीय का कहना है कि कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री भी बेचैन हैं, लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी रणनीति और तेज कर दी है, क्योंकि आदेश शायद सीधे दिल्ली से आ रहे हैं, इनकी योजना हिंदू संस्थाओं को बदनाम करना, उनकी विश्वसनीयता को तोड़ना और हिंदू ताकत को कमजोर करना है, धर्मस्थल तो बस शुरुआत है।

षड्यंत्र की गंध और सनातन मंदिर संस्कृति पर प्रहार

भारत की आत्मा उसकी सनातन संस्कृति में बसती है। मंदिर न केवल पूजा-अर्चना के स्थल हैं, बल्कि सामाजिक समरसता, शिक्षा, कला और लोकजीवन के केंद्र भी हैं। यही कारण है कि जब भी किसी को भारतीय समाज की जड़ों पर चोट करनी होती है, तो सबसे पहले मंदिरों को निशाना बनाया जाता है। सनातन परंपरा में मंदिर जीवन और ऊर्जा का प्रतीक है। यहाँ मृत शरीर का प्रवेश तक निषिद्ध माना जाता है। हिंदू धर्म में मृतक का अंतिम संस्कार श्मशान भूमि में अग्नि दाह से होता है। अपवादस्वरूप संन्यासियों के लिए कभी-कभी समाधी लेने (दफनाने) की परंपरा रही है, किंतु वह भी मंदिर परिसर में नहीं, बल्कि निर्धारित स्थल पर ही की जाती है। ऐसे में यह दावा कि मंदिरों के भीतर शव दफनाए गए, अपने आप में ही शुरू से ही परंपरा-विरोधी और संदिग्ध मामला नजर आ रहा था, जो अब सच साबित हो चुका है।

शुरू से विरोधियों की मंशा, सनातन को बदनाम करने की रही

कर्नाटक के प्रसिद्ध धर्मस्थल मंदिर को लेकर जिस तरह “लाशें दफनाने” का मुद्दा उछाला गया, उससे साफ है कि विरोधियों की मंशा हिन्‍दू सनातन संस्‍कृति को बदनाम करना रही है।यही कारण है कि ये आरोप जांच की कसौटी पर टिक नहीं पाए। स्पष्ट है कि यह विवाद केवल स्थानीय नहीं, बल्कि एक व्यापक षड्यंत्र का हिस्सा था। उद्देश्य था मंदिर संस्कृति पर अविश्वास पैदा करना। अब सवाल ये है कि आखिर दोषी कौन? चेन्ना (स्वयंभू व्हिसलब्लोअर), जिसने झूठे आरोप गढ़े और धार्मिक स्थल को विवाद में घसीटा। सुजाता भट और यूट्यूबर समीर जिन्होंने झूठे दावे और दबाव के माध्यम से विवाद को हवा दी। कुछ मीडिया समूह और राजनीतिक दल, जिन्होंने तथ्य-जांच किए बिना आरोपों को प्रचारित किया और मंदिर संस्कृति की छवि धूमिल की!

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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