पंजाबी मूल के वैज्ञानिक डॉ. गुरतेज संधू के नाम लगभग 1380 अमेरिकी पेटेंट हैं. संधू फ़ोन में हज़ारों फ़ोटो स्टोर करने वाली मेमोरी चिप्स को छोटा और स्मार्ट बनाने में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं.
डॉ. गुरतेज संधू कंप्यूटर चिप बनाने वाली कंपनी माइक्रॉन टेक्नोलॉजी में प्रिंसिपल फ़ेलो और कॉर्पोरेट वाइस प्रेसिडेंट हैं.
उन्होंने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली और नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी, चैपल हिल से पीएचडी की.
साल 2018 में उन्हें आईईईई एंड्रयू एस. ग्रोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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गुरतेज संधू को पंजाब यूनिवर्सिटी ने विज्ञान रत्न पुरस्कार भी दिया है. यह पुरस्कार उन्हें भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने दिया.
उन्होंने बीबीसी पंजाबी से बातचीत में नई सोच की प्रेरणा, एआई तकनीक और भविष्य की टेक्नोलॉजी पर विस्तार से चर्चा की.
साइंस और टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी कैसे हुई?डॉ. गुरतेज संधू का जन्म लंदन में हुआ, लेकिन उनका बचपन अमृतसर, पटियाला और चंडीगढ़ में बीता. वर्तमान में वह अमेरिका में रहते हैं.
वो कहते हैं, "मेरा जन्म लंदन में हुआ था. मेरे माता-पिता वहां पढ़ाई के लिए गए थे."
पिता ने केमिस्ट्री में पीएचडी की और मां ने मास्टर्स किया. मेरा ज़्यादातर जीवन विश्वविद्यालयों के माहौल में बीता, और सबसे ज़्यादा समय मैंने अमृतसर में गुजारा."
वो बताते हैं कि उनके पिता डॉ. सरजीत संधू ने उन्हें केमिस्ट्री के अलावा किसी और क्षेत्र में जाने की सलाह दी थी.
गुरतेज कहते हैं, "पिता ने कहा था कि अगर तुम केमिस्ट्री में कुछ करोगे तो लोग कहेंगे कि यह माता-पिता की सिफ़ारिश से हुआ. लेकिन अगर तुम किसी और क्षेत्र में जाओगे, तो वह तुम्हारी अपनी पहचान होगी."
"मुझे भौतिक विज्ञान (फ़िज़िक्स) और इंजीनियरिंग में शुरू से ही दिलचस्पी थी क्योंकि फ़िज़िक्स जीवन के कई बुनियादी सवालों के जवाब देती है, और वहीं से इंजीनियरिंग की ओर रुझान बढ़ा."
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गुरतेज संधू का तकनीक के क्षेत्र में व्यापक अनुभव रहा है. उन्होंने कई शोधों में अहम भूमिका निभाई है.
नई सोच के बारे में बात करते हुए गुरतेज संधू कहते हैं, "नई चीज़ें जानने की इच्छा बचपन से ही थी. 7-8 साल की उम्र में मैंने किसी से पूछा था कि लोग क्यों मरते हैं, तारे क्या हैं. इन्हीं सवालों की वजह से मेरी विज्ञान में दिलचस्पी हुई. मेरे माता-पिता भी विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े थे."
आज गुरतेज संधू के नाम सैकड़ों पेटेंट दर्ज हैं.
हर बार नई सोच की प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर वो कहते हैं, "सोचने की प्रेरणा पेटेंट की नहीं होती, उसे खुद ही पैदा करना पड़ता है. किसी भी समस्या के समाधान के लिए सवाल पूछना ज़रूरी है. जब बच्चे हमसे सवाल पूछते हैं, तो हमें उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए."
वो आगे कहते हैं, "बच्चे शुरू से ही बहुत जिज्ञासु होते हैं. जब वे सवाल पूछें तो हमें उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए. हर किसी में प्रतिभा होती है. मैंने भी दुनिया के बारे में इसी तरह सीखना शुरू किया था. जब मैं इंजीनियरिंग में गया, तब भी मैं सवाल पूछता रहा."
गुरतेज संधू का मानना है कि इंजीनियरिंग में भी जब आप कोई मशीन बनाते हैं, तो उसे विज्ञान के दायरे से बाहर जाकर नहीं बनाया जा सकता. किसी भी प्रोजेक्ट की शुरुआत से पहले यह समझना ज़रूरी है कि विज्ञान की सीमाएं क्या हैं.
वो कहते हैं कि इंसान में जिज्ञासा होना ज़रूरी है. किसी समस्या का हल निकालने के लिए नए तरीक़े खोजने चाहिए.
उनका कहना है, "भारत में बहुत सारे नए आविष्कार हो रहे हैं. जिसे हम जुगाड़ कहते हैं, वह दरअसल नया शोध है."
गुरतेज संधू करते क्या हैं?
गुरतेज संधू का पूरा करियर तकनीक के क्षेत्र में रहा है. हमने उनसे उनके पेशे के बारे में सरल शब्दों में बताने को कहा.
इस बारे में गुरतेज सिंह कहते हैं, "मेरा ज़्यादातर काम मेमोरी चिप और कंप्यूटर चिप बनाने का है. मैं माइक्रॉन टेक्नोलॉजी में काम करता हूं. चिप बनाने के क्षेत्र में तीन बड़ी कंपनियां हैं, दो कोरियाई हैं और तीसरी हमारी कंपनी है."
"आपके फ़ोन से ली गई तस्वीर जिस चिप में स्टोर होती है, हम वही बनाते हैं. हम कई तरह के मेमोरी चिप बनाते हैं. हम ऐसी चिप भी बनाते हैं, जो लैपटॉप, स्मार्टफ़ोन या कई दूसरे उपकरण में लगती हैं."
"जब मैंने 25 साल पहले काम करना शुरू किया था, उस समय की चिप बहुत महंगी थीं और उनकी परफ़ॉर्मेंस भी उतनी अच्छी नहीं थी. हम उसी तकनीक में सुधार करते हैं, चिप को स्मार्ट बनाते हैं ताकि उनमें ज़्यादा से ज़्यादा डेटा स्टोर किया जा सके."
"मैंने अपने जीवन में जो पहला कंप्यूटर देखा था, उसका आकार दो कमरों के बराबर था. अब आपके मोबाइल में इस्तेमाल होने वाले चिप 100 गुना ज़्यादा बेहतर हैं और इनके लिए हज़ार गुना कम कीमत चुकानी पड़ती है. 25 सालों में इतनी तकनीकी प्रगति हुई है कि तकनीक अब हर किसी की पहुंच में है. मैं भाग्यशाली हूं कि मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा रहा."
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अब एआई (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस) का दौर है. सवाल यह है कि हमें इससे डरना चाहिए या इसके साथ आगे बढ़ना चाहिए.
इस पर गुरतेज संधू कहते हैं, "जब इंटरनेट आया था तो मेरा एक दोस्त कहता था कि मैं कभी इंटरनेट बैंकिंग नहीं करूंगा, अब वही कहता है कि मैं बैंकिंग से लेकर स्टॉक तक सब कुछ इंटरनेट पर करता हूं. दरअसल, हम बदलाव से डरते हैं. तकनीक कभी अच्छी या बुरी नहीं होती, अच्छे या बुरे तो वो लोग होते हैं जो इसका इस्तेमाल करते हैं."
"अब गांव में बैठे किसी व्यक्ति के पास भी फ़ोन पर वह जानकारी है, जो हमारे पढ़ाई के समय नहीं थी. अब यह तय करना आपके हाथ में है कि आप अपने समय और तकनीक का इस्तेमाल कैसे करते हैं."
"आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस अब तकनीक का अगला स्तर है. यह तकनीक आपकी भाषा समझ सकती है. हमने एआई बनाया है, यह हमारी ही नकल कर रहा है. एआई वही करेगा, जो हम करेंगे, इसलिए यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं."
'पंजाब में शिक्षा पर ज़ोर देने की ज़रूरत'पंजाब के साथ अपने रिश्ते के बारे में बात करते हुए गुरतेज संधू कहते हैं, "पंजाब के साथ मेरा रिश्ता हमेशा बना रहेगा. हमें अपने इतिहास को याद रखना चाहिए और उसके आधार पर देखना चाहिए कि हम आगे क्या कर सकते हैं."
"कुछ लोग कहते हैं कि पंजाब पीछे छूट गया है, लेकिन मैं कहता हूं कि पंजाबी पीछे नहीं छूटे हैं, पंजाबी हर क्षेत्र में आगे हैं. आप पंजाब में क्या कर रहे हैं, यह आपके फ़ैसलों पर निर्भर करता है."
गुरतेज कहते हैं, "मैं यही कहूंगा कि शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए. बच्चे इस दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है."
गुरतेज संधू कहते हैं, "मैं बच्चों को हमेशा यही संदेश देता हूं कि जो विषय आपको सबसे कठिन लगता है, उसे ज़्यादा वक़्त देना चाहिए. बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता, अगर जो कठिन है, उसे छोड़ देंगे तो सफलता पाना मुश्किल है."
वो आगे कहते हैं, "जीवन में भी यही नियम लागू होता है, चाहे कितनी भी चुनौती हो, आगे बढ़ते रहो. कभी-कभी मुझे भी अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिल पाता. अचानक एक दिन मैं जागता हूं और मुझे उस समस्या का समाधान मिल जाता है, इसलिए कड़ी मेहनत करते रहो, इसका कोई विकल्प नहीं है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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